For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरी यादों का श्रृंगार सजा

तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन रीत सजाता हूँ.

वो वल्लरियों से पल
तेरी सुध से महके ऐसे
फिर से सिंचित कर उर में
मन को फिर समझाता हूँ.

कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.

मन पुलकित होता बेसुध मैं
कम्पित करता तार वही
उसी भँवर में बार-बार मैं
घूम-घूम कर आता हूँ.!!

Views: 756

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Raj Tomar on October 12, 2012 at 10:27pm

बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीया रेखा जी. :)

Comment by Rekha Joshi on October 12, 2012 at 10:03pm

कल बारिस की झनझन में 
पैजनियाँ तेरी झंकार गई 
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही 
फिर से गीत सजाता हूँ.,सुंदर अभिव्यक्ति राज जी ,बधाई 

Comment by Raj Tomar on October 12, 2012 at 1:22pm

आदर्णीय योगराज सर, आप की बात बिल्कुल सही है. अगली बार से मैं ज़रूर प्रयास  करूँगा. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, :)

श्रीमान बागी साब, त्रुटि पर नज़र डालने के लिए बहुत शुक्रिया.सराहना करने के लिए आपका आभार . :)

Comment by Raj Tomar on October 12, 2012 at 1:12pm

आदर्णीय सौरभ सर, आपकी बात का स्वागत है. मैं ज़रूर कोशिश करूँगा कि इस बात का ध्यान रखूँ.
आपका आभार. :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2012 at 1:01pm

इस कविता के लिये बधाई. राजभाई, इस रचना के शिल्प पर आपको बहुत कुछ कहा जा चुका है. आप उनपर अमल करें. अपने इस गुण को व्यवस्थित करें. शिल्पप्रबुद्ध पाठ पाठकों के साथ-साथ आपको भी सरस लगेगा.

शुभेच्छाएँ


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 11:04am

कोमल भावों से सजी यह काव्य अभिव्यक्ति दिल को सुकून देने वाले है, थोड़ी सी गेयता और बढ़ जाये तो सोने पर सुहागा हो जाये. बहरहाल मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें राज भाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2012 at 9:35am

राज तोमर जी, प्रयास अच्छा है, भाव भी अच्छे हैं, गेयता जो गीत हेतु अनिवार्य अंग है उसमे कमी है जिसे भाई संदीप ने इंगित भी किया है | मुझे लगता है कि कृन्दन शब्द कि जगह क्रंदन होना चाहिए |

इस अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 11, 2012 at 6:19pm

मैं उन्हीं पुराने सुर में ही 
फिर से गीत सजाता हूँ. - वाह क्या बात है वैसे सुर कभी पुराना नहीं होता 
मन्त्र मुग्ध

                                कर देने वाल सुर और गीत बार बार सुनने को जी करता है 
                                बहुत बढ़िया लिखा है, बधाई 
Comment by Raj Tomar on October 11, 2012 at 1:25pm

भाई संदीप जी.
मुझे इतना सम्मान देने की ज़रूरत नहीं. मैं इसका पात्र नहीं हूँ.:)
बड़ी खुशी हुई आपने इतने गौर से पढ़ा. और इसमें दिल दुखने जैसी बात कहाँ.
आपकी समालोचना बहुत सही है लेकिन मुक्तक में अर्थ बदल जाएगा . जो मैंने कहने की कोशिश की है और 
जो आप कहना चाह रहे हैं थोड़ा भिन्न हो जाएगा. :)
जीवन की रीत नहीं मैं जीवन रूपी रीत की बात कर रहा हूँ.
ऐसे और जैसे की तुकबंदी अच्छी लग रही है.लेकिन अर्थ बदल रहा है. हाँ, अंतिम दो पंक्तियों में आपका सुझाव बहुत ही अच्छा है.
आपका आभारी हूँ कि आपने ऐसा अमूल्य सुझाव और अपना वक्त दिया. भविष्य में भी यही आकांक्षा है आपसे. :)

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 11, 2012 at 12:26pm

आदरणीय तोमर साहब सादर
बहुत ही भावात्मक गीत लिखने का प्रयास किया है इसके लिए आपको बधाई

कुछ जगह  मुझे लगा की कुछ रिक्त है अर्थात गीत को यदि उन रिक्त स्थानों  की पूर्ती करते तो और मधुर और गेय बनाया जा सकता था
जैसे
तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन "की" रीत सजाता हूँ.

वो वल्लरियों से पल ऐसे
तेरी सुध से महके हों जैसे
फिर से सिंचित उर में करके
मन को फिर से  समझाता हूँ.


ये मेरे विचार हैं कोई तनकीद नहीं बस एक मित्र को मित्र की सलाह
और ये जरुरी भी नहीं के आप इससे सहमत हों
यदि आपका दिल दुखा हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ स्नेह बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
21 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
21 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service