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करवाचौथ की फुलझड़ियाँ "माहिया"

"माहिया" में  पति पत्नी की चुहल बाजी  मात्रा १२,१०,१२ कही कहीं गायन की सुविधा के लिए एक दो मात्रा कम या ज्यादा हो सकती हैं

(पत्नी )

सास को बुलाऊंगी 
जब अपना पहला 
करवाचौथ मनाउंगी 
(पति )
मम्मी जी आ जाना 
पर्व  के बहाने
तुम पाँव  दबवा  जाना 
(पत्नी )
सासू जी आ जाना 
ले कर  शगुन  अपने 
कंगन देती जाना 
(पति )
चंदा जब आएगा 
बदरी छटने दो 
साजन मुस्काएगा 
(पत्नी )
इमली  का वो  बूटा 
तेरे लिए सजना 
मेरा प्यार ना  झूठा 
(पति )
ये  दिन तो  अपना है
पूजा हो मेरी  
इक साल का सपना है 
 (पत्नी )
तू देख  तरस खाना 
ऐ प्यारे चंदा 
जरा  जल्दी आ जाना 
(पति )
मौसम ये  सुहाना है 
तरसने दो नैना 
फुर्सत से जाना है 
(पत्नी )
जरा जल्दी आ जाना 
मेरे लिए  पंद्रह 
रसमलाई ले आना 
(पति )
रसमलाई खाना है 
आदत है तेरी 
उपवास  बहाना है 
(पत्नी )
यूँ मुझे  सताओगे 
रूठ गई मैं तो 
टसुवे तुम बहाओगे 
(पति )
ऐसी भी दूरी ना
करवे का उत्सव 
कोई मजबूरी ना 
(पत्नी )
ज्यादा ना माँगूंगी
हीरे के नेकलिस 
से  काम चला लुंगी 
(पति )
जाँ पे बन आई है 
 तुझे कहूँ कैसे 
तनखा ना  आई है  
(पत्नी )
मैके चली जाउंगी 
मुझे  सताओगे 
वापस ना आउंगी 
(पति )
पत्नी के जमाने हैं 
चल अब  मान गया 
सात वचन निभाने हैं 
(पत्नी )
बड़ा पुण्य कमाया है 
किस्मत है तेरी 
जो मुझको पाया है 
(पति )
खुशियों की ये घड़ियाँ 
 बंद करें अब हम
ये कड़वी फुलझड़ियाँ 
(दोनों )
ये दिवस  सुहाना है 
     करवे का उत्सव
   ख़ुशी से  मनाना है
********************

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 31, 2012 at 8:54am

आदरणीय उमाशंकर मिश्र जी आपको ये माहिया पसंद आया हार्दिक आभार 

Comment by राज़ नवादवी on October 31, 2012 at 8:41am

वाह, क्या बात है, हलके फुल्के कथोपकथन में प्यार ओ तकरार की मीठी मीठी फुलझडियाँ. बधाई हो आदरणीया राजेश जी इस लीक से हटके की गई सुन्दर रचना के लिए. 

Comment by UMASHANKER MISHRA on October 30, 2012 at 11:28pm

 आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही बढ़िया प्रसंग लेकर सुन्दर सृजन किया है 

इन सन्दर्भों पे बहुत कम ही रचना कारों की नजर जाती है 

पति पत्नि और सास को लेकर करवा चौथ आपकी बेहेतारिन रचना है 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 30, 2012 at 7:48pm

बहुत बहुत आभारी हूँ रविकर भाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 30, 2012 at 7:47pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी हार्दिक आभार आपका बहुत बढ़िया पंक्तियाँ हैं 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2012 at 5:48pm
अच्छी व्यंग रचना बधाई राजेश कुमारी जी 
बाते करवा चौथ की 
बदबू आई स्वार्थ की 
चिंता करे सुहाग की 
या फिर गलेहार की 
भाव सब हुए पराये 
परम्परा है अपनाए -
सौभाग्य का तौहार है 
सुहाग की मनुहार है | 

 

Comment by रविकर on October 30, 2012 at 5:22pm

आभार आदरेया ||

पूछा अपने दोस्त से, ओ पाजी सतवंत ।
सन बारह का हो रहा, दो महीनों में अंत ।
दो महीनों में अंत, बुरा दिन एक बताना ।
और कौन सा भला, दिवस वह भी समझाना ।
कहता है सतवंत, बुरा दिन साल गिरह का ।
बढ़िया करवा चौथ, बोल कर पाजी चहका ।।

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