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एक नज़्म ...तुम्हारे नाम

आज की रात बहुत भारी है 
पीर है या कि जैसे आरी है !! 
आती जाती हुई साँसों में दम निकलता है,
लम्हाँ-लम्हाँ तुम्हें पाने को दिल मचलता है !   
गहरे सन्नाटे में हर ओर तेरी आवाज़ें..
इस अंधेरे में जागतीं हैं कुछ तेरी यादें !
मेरी आँखों में तडपते हैं कई ख़्वाब नए, 
ये कशिश है तेरी चाहत जो आंसुओं में बहे ! 
एक ख़ुशबू मेरी बाँहों में कैद जागी है ,
मेरी रग रग में मुहब्बत सी दौड़ी जाती है!
नींद है कोसों दूर आँखों से .. 
दर्द सोया नहीं है यार कई रातों से !
करीब आओ, न मुझको ,बेक़रार करो .
तुम कहाँ हो कि मेरे पास आओ प्यार करो ...!!
        ~भावना 
 

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Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 7:01am

पंक्तियाँ कोमल भावों से पगे शब्दों को जी रही हैं.  बधाई कि बढिया प्रयास हुआ है.

आप इस तरह की भावाभिव्यक्तियों को सरस गीतों में ढालने का प्रयास करें, भावनाजी. चूँकि आपकी इस प्रस्तुति की पंक्तियों में भी अंतरगेयता है अतः मेरी समझ से गीतात्मकता आपकी ऐसी प्रस्तुतियों को अनुपम कर देगी. 

सादर

Comment by MAHIMA SHREE on February 2, 2013 at 11:00pm

 नमस्कार आदरणीया भावना जी .. भावभरी प्रस्तुति  के लिए बधाई आपको

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:19pm

अलग सा हट के किया गया प्रयास सुखद लगा बहुत बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:52pm

बहुत ही भावपूरण रचना है..हार्दिक बधाई ...........

Comment by Aarti Sharma on February 2, 2013 at 5:49pm

सुन्दर रचना बधाई...

Comment by vijay nikore on February 2, 2013 at 2:50pm

आदरणीय भावना जी:

दर्द सोया नहीं है यार कई रातों से !
करीब आओ, न मुझको ,बेक़रार करो .
तुम कहाँ हो कि मेरे पास आओ प्यार करो

सारी कविता के भाव भी ऐसे ही मार्मिक हैं।

बधाई।

विजय निकोर

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