For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!
उठती भाप,
बढ़ता ताप,
खौलता धमनियों में खून
मचल पड़ते नाखून
खरोंचने को ...खुद को
चिमटा,बेलन घर के अपने थे
आग पर चढ़ा दिया
जला दिया
इच्छाओं को ..
मैं चुपके से देखती हूँ
इन रोटियों में अक्स अपना !!
आती जाती हर आँख
सेंकती नज़र आती है रोटियाँ
भीतर उठता है धुआँ
और गहरे डूब जातीं हैं
भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
~भावना

Views: 408

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 5:27am

भावनाजी, बहुत खूब !

जिस सहजता और सरलता से आपने भावजन्य शब्दों को होने दिया है, वह आपकी संवेदनशीलता और गंभीर रचनाकर्म का द्योतक है.

मचल पड़ते नाखून
खरोंचने को ...खुद को

झुंझलाहट की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति ! वाह-वाह !!

आती जाती हर आँख
सेंकती नज़र आती है रोटियाँ
भीतर उठता है धुआँ
और गहरे डूब जातीं हैं

देह विशेष की दशा और उसकी धारता से उपजी विवशता को क्या ही सुन्दर शब्द मिले हैं ! एक पाठक के तौर पर आपके संप्रेषण को मैं शिद्दत से महसूस कर पा रहा हूँ. यह आपके रचनाकर्म की सफलता है. 

भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!

अपने होते चले जाने और अपने साथ होते चले जाने को आपका रचनाकार छटपटाता हुआ स्वीकार करता दीखता अवश्य है लेकिन उसके मौन में प्रतिकार है. भावनाजी, यह इस मौन-प्रतिकार को देह और शब्द की मुखरता मिले. 

इसी तरह की भावनाओं के लगातार घनीभूत होते चले जाने पर पिछले दिनों हमने एक शेर होने दिया है. विश्वास है, उसे आपका अनुमोदन मिलेगा -

जो ज़िस्म जी रही हूँ, लगता मुझे सदा यों --
ये कैदे बामशक्कत, जो तूने की अता है ॥

आपकी इस रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:25pm

इस स्वीकारोक्ति हेतु आभार आदरणीया भावना जी ....स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by भावना तिवारी on February 2, 2013 at 7:14pm

अक्षरश: सत्य AADARNIY संदीप जी ..मैने प्रतिउत्तर देने का छोटा सा प्रयास किया भी था ....!! 
हम आप सभी के ह्रदय से आभारी हैं ..!!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:07pm

बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना हेतु

भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!

आपका सवाल सही है आदरणीय राजेश  जी इसमें कवित्री ने वही कहा है जो चल रहा है आजके इस दौर में सब जानते हैं ये ग़लत है किन्तु मौन हैं क्यूंकि वो भी इसी का हिस्सा हैं ..........क्या मैं सही हूँ आदरणीया

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 2, 2013 at 1:26pm

घर बाहर सभी जगह महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर विवशता को बयां करती मार्मिक रचना को भावों से सजाने के लिए बधाई स्वीकारें. आदरेया भावना तिवारी जी सादर.

Comment by भावना तिवारी on February 1, 2013 at 3:45pm

भूख में,
मौन मन विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
....उन औरतों की भूख जो आज भी भूख मिटाने के लिए रोटियों की तरह हर रोज़ सिंकती हैं ...मौन रह कर..कोई प्रतिवाद नहीं
,कोई उफ़ नहीं,उनका प्रतिउत्तर केवल मौन...!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 1, 2013 at 1:57pm
सिकती रोटियों से उठती भांप से भावनाओं को सेंक कर 
रचना में बखूबी उंढेल दिया है आपने, बधाई भावना तिवारी जी 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 1, 2013 at 12:21pm

भावों का एक समुच्चय, बिम्बों के झरोखे से कवियित्री जिस मार्मिकता से छू कर निकलती है, वह कही नहीं जा सकती , केवल उन बातों को महसूस किया जा सकता है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया डॉ भावना तिवारी जी |

Comment by राजेश 'मृदु' on February 1, 2013 at 11:40am

बहुत ही अच्‍छी रचना है, भाव इतनी गहराई से छूते हैं कि मन अकबक करने लगता है सिर्फ एक चीज जानना चाहूंगा कि भूख में मौन मन में भूख क्‍या किसी बिंब का द्योतक है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service