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प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |

प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?

सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |

निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||

पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |

अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||

युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |

खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||

पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |

प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है ऋतुराज||

लगा डुबकियाँ कुंभ में ,तन का मैल उतार |
कहाँ उतारे सोच ले ,मन का शेष विकार||

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 14, 2013 at 1:48pm

आदरणीय सौरभ जी आपका कहना सही है कीजिये के साथ तुम खटक रहा है अतः आपसे अनुरोध है कि दूसरी पंक्ति में  सच्चे दिल का प्यार कर दीजिये सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 1:42pm

बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया इस सरस दोहावली हेतु 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 14, 2013 at 1:24pm

इन दोहों से निस्सृत कई ऐसे प्रश्न हैं जो जिम्मेदार भारतीयों का स्वर पा रहे हैं और प्रश्न वस्तुतः अनुत्तरित हैं.

आपकी संवेदना मात्र भावुक नहीं बल्कि एक जागरुक संवेदना है. जो निरंतर अभ्यास और गहन अनुभव का परिणाम होता है.

एक बात : आदरणीया, दूसरे दोहे में तुम  सर्वनाम का कीजिये  के साथ सहज जुड़ाव नहीं बन पा रहा है. कृपया देख लीजियेगा.

पुनः हार्दिक बधाई व सादर शुभकामनाएँ.

Comment by नादिर ख़ान on February 14, 2013 at 1:07pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी

बहुत उम्दा अंदाज़ में सीख दे दी अपने 

बधाई...

कृपया ध्यान दे...

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