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बस तेरी चुप्पी मुझे खलने लगी

जब से मजबूरी मेरी बढ़ने लगी

दोस्तों से दूरी भी बनने लगी

 

उनकी हाँ में हाँ मिलाया जब नहीं 

बस मेरी मौजूदगी डसने लगी

 

कद मेरा उस वक्त से बढ़ने लगा

आजमाइस दुनिया जब करने लगी

 

भा गई फिर सब्र की तौफीक भी 

ज़ुल्म की शिद्दत भी जब बढ़ने लगी

 

दूर मुझसे आप जब से हो गए

ज़िंदगी से हर खुशी झड़ने लगी

 

तेरी हर तकलीफ से वाकिफ़ हूँ मै

बस तेरी चुप्पी मुझे खलने लगी 

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Comment by नादिर ख़ान on February 20, 2013 at 10:21am

आदरणीय, अशोक जी एवं  अजय जी हौसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया ....

Comment by ajay yadav on February 19, 2013 at 11:30pm

दूर मुझसे आप जब से हो गए

ज़िंदगी से हर खुशी झड़ने लगी......बहुत खूबसूरत शेर |बधाई |

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 11:28pm

 

आदरणीय नादिर खान साहब सादर, सुन्दर गजल बधाई स्वीकारें.

Comment by नादिर ख़ान on February 19, 2013 at 11:22pm

 आरती जी बहुत शुक्रिया 

कोशिश को सराहा आपने...

Comment by Aarti Sharma on February 19, 2013 at 8:33pm

प्रणाम नादिर सर ..बेहद सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें..

Comment by नादिर ख़ान on February 19, 2013 at 3:35pm

सभी आदरणीय,

विजय निकोर जी, डॉ प्राची जी, विजय मिश्र जी, डॉ. अजय खरे जी, राजेश कुमारी जी, संदीप पटेल जी, मीना पाठक जी एवं लक्ष्मण प्रसाद जी आप सबका स्नेह मिला। आपने हमारी छोटी सी कोशिश  को सराहा  इसके लिए मै आप सभी का शुक्र गुजार हूँ ।

आप सभी का बहुत आभार आपने मेरा हौसला बढ़ाया ......

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 19, 2013 at 2:00pm

सच्चाई बयां की है आपने सुंदर गजल के माध्यम से, हार्दिक बधाई श्री नादिर खान भाई 

हां में हां कहे जब तलक,आपके साथ है तब तलक ।
हा में हां मिलाना छोड़ दिया,  फतवा- उसे घमंड आ गया 
Comment by Meena Pathak on February 19, 2013 at 1:06pm

बेहतरीन गज़ल नादिर जी .... बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 19, 2013 at 12:52pm

वाह वाह
सुंदर गजल क्या ही खूबसूरत अश्आर बने हैं

सब्र की तौफीक फिर अच्छी लगी
ज़ुल्म की शिद्दत भी जब बढ़ने लगी

वाह दाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 12:20pm

सुंदर ग़ज़ल लिखी है नादिर जी बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

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