For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - निलेश 'नूर'- धडक मत ऐ दिले नादाँ, किसी की याद आई है

१२२२,१२२२,१२२२,१२२२
.
वो लेतें है शिकायत में, कि लेतें है मुहब्बत में,
हमारा नाम लेतें है वो अपनी हर ज़रूरत में,
***

मै राजा और तुम रानी, ये दुनियाँ सल्तनत अपनी,
हक़ीक़त में नहीं होता, ये होता है हिक़ायत में.
***

ये रुतबा, ओहदा, शुहरत, सभी हमनें भी देखें है,
छुपा है कुछ, नुमाया कुछ, शरीफ़ों की शराफ़त में. 
*** 

मेरे ही क़त्ल का इल्ज़ाम क़ातिल ने मढ़ा मुझ पर,
गवाही भी वही देगा, वो ही मुंसिफ़ अदालत में.    
***

न तुम शीरीं न मै फ़रहाद, लैला तुम न मै मजनूं
जुदा होना ही बेहतर है, रखा क्या है बग़ावत में. 
***

धडक मत ऐ दिले नादाँ, किसी की याद आई है,
लगे शोरे क़यामत सी,  तेरी धकधक इबादत में.
***

निगाहें, दिल, किताबें, ख़त, सितारें, चाँद, ग़ज़लें, ‘नूर’    
लिखा इतना ही था मक़तूल शाइर की वसीयत में. 
******************************************************
निलेश 'नूर' - मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1002

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on October 23, 2013 at 3:21pm

हमारा ज़िक्र तुम करते हो अक्सर हर शिक़ायत में,
मगर शामिल रहे है हम तुम्हारी हर ज़रूरत में. 

अक्सर का अर्थ है कभी कभी
हर शिकायत का मतलब है - प्रत्येक में

ये विरोधाभास है

इसे ऐसे कर लीजिए

हमारा ज़िक्र करते हो तुम अपनी हर शिक़ायत में,

Comment by coontee mukerji on October 23, 2013 at 1:59pm

न तुम शीरीं न मै फ़रहाद, लैला तुम न मै मजनूं
जुदा होना ही बेहतर है, रखा क्या है बग़ावत में. .................वाह! सही फ‌रमाया है  जनाब.
***

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 9:26am

आदरणीय शानदार ग़ज़ल हुई है ...

ये रुतबा, ओहदा, शुहरत, सभी हमनें भी देखें है, 
छुपा है कुछ, नुमाया कुछ, शरीफ़ों की शराफ़त में.  
*** 

मेरे ही क़त्ल का इल्ज़ाम क़ातिल ने मढ़ा मुझ पर, 
गवाही भी वही देगा, वो ही मुंसिफ़ अदालत में.  ..ये दोनों शेर मुझे बेहद पसंद आये ..सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 23, 2013 at 9:10am

आदरणीय वीनस केसरी जी,
आप ने जिस पहलू पर ध्यान दिलाया है वो पहले पहल मैंने भी सोचा था लेकिन थोड़ी सी लापरवाही के चलते इग्नोर कर दिया था. आप का बहुत आभारी हूँ की आप ने इसे उजागर किया और मुखे सोचने पर विवश किया की क्या ये मतला किसी और तरीके से मै कह सकता हूँ या नही .... इसी विचार मंथन से ये नया मतला निकला है ... आप की नज्र करता हूँ ...
.

हमारा ज़िक्र तुम करते हो अक्सर हर शिक़ायत में,
मगर शामिल रहे है हम तुम्हारी हर ज़रूरत में.  
आभार 

 

Comment by वीनस केसरी on October 23, 2013 at 1:19am

भाई जी
पूरी ग़ज़ल के लिए बेहतर दाद क़ुबूल फरमाएं ,,, अच्छी ग़ज़ल कही है ....

निवेदन है कि आपके मतले के मिसरा ए उला में जम का पहलू नुमाया है ... इसे तुरंत बदलिए

किसी मंच पर पढ़ देंगे तो खतरनाक ढंग से हूट हो जायेंगे ... :))))))))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 11:19pm

शुक्रिया केवल जी, गिरिराज जी एवं संदीप जी .... आभार  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 22, 2013 at 8:18pm

आदरणीय नीलेश भाई , बहुत खूबसूरत , कामयाब गज़ल कही है !!!! मक्ता औभी खूबसूरत कही !!!!! तहे दिल से दाद कुबूल करें !!!!!

निगाहें, दिल, किताबें, ख़त, सितारें, चाँद, ग़ज़लें, ‘नूर’    
लिखा इतना ही था मक़तूल शाइर की वसीयत में.  --------- वाह भाई क्या बात है !!!!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 22, 2013 at 6:58pm

वाह वाह साहब क्या ही शानदार अशआर कहे हैं आपने

इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल करें

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 22, 2013 at 6:56pm

आदरणीय नीलेश भार्इ जी!  सादर प्रणाम!  वाह! बेहतरीन गजंल।------

//निगाहें, दिल, किताबें, ख़त, सितारें, चाँद, ग़ज़लें, ‘नूर’     
लिखा इतना ही था मक़तूल शाइर की वसीयत में.//  तहेदिल से दाद कुबूल करे।   सादर,

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 5:18pm

शुक्रिया आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी, शिज्जू शकूर जी, अभिनव जी, राम अवध जी .... आप जैसे बड़े और स्थापित ग़ज़लकारों की दाद बहुत हौसला देतीं है.
स्नेह बनाएं रखिये
आभार    

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
16 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service