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ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- वक़्त ज़ाया करो, न राहों में....

२१२२ १२१२ २२   
.
वक़्त ज़ाया करो, न राहों में,
मंजिलों को रखो निगाहों में.
.

फूल ही फूल दिल में खिलते है,
आप होते हो जब भी बाहों में.
.

है नुमाया पता नहीं क्या कुछ,
और क्या कुछ छुपा है चाहों में.
.

तख़्त ताज़ों को ये उलट देंगी,
वो असर है मलंग की आहों में.
.

है डराती मुझे मेरी वहशत,
तू मुझे ले ही ले पनाहों में.
.  

आज है वक़्त तू संभल नादां,
क्यूँ फंसा है बता गुनाहों में.
.

साथ देने लगे हो आंधी का,    
तुम गिने जाओगे तबाहों में.
.

दिल न काबू में रख सके अपना,
आज होते वगरना शाहों में.   
.

चाहता ‘नूर’ था फ़क़त इतना,
दम वो तोड़े तुम्हारी बाहों में. 
.  

निलेश 'नूर'
मौलिक एवं अप्रकाशित 
 

Views: 724

Comment

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Comment by Sushil.Joshi on October 25, 2013 at 5:20am

इस शानदार प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई आ0 नीलेश जी.....

Comment by Saarthi Baidyanath on October 24, 2013 at 7:04pm

मक्ता शानदार और जानदार है ! बढ़िया ग़ज़ल ...बधाई :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 6:30pm

आदरणीय नीलेश भाई , बेहतरीन गज़ल कही है !!! मक्ता लाजवाब लगा !!!

वो असर है मलंग की आहों में.------ इस मिसरे की तक्तीअ पुनः कर देखें !!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 24, 2013 at 5:03pm

 आदरणीय निलेश जी  इस बेहतरीन ग़ज़ल का ये अशार मुझे बेहद पसंद आया ..

 न काबू में रख सके अपना,
आज होते वगरना शाहों में.   सादर बधाई के साथ

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