मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन फअल
समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,
यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया।
जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,
सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।
कभी पहले से कोर्इ तय नहीं होती जगह ,
जहाँ चाहा वहीं संतो का डेरा हो गया।
कटेगी राम जाने किस तरह से जिन्दगी ,
मगर के साथ मछली का बसेरा हो गया।
फंसा कर जाल में मानेगा ही अब तो उसे ,
सुनहरी मछली पे मोहित मछेरा हो गया।
यहाँ पर घुटरहा है दम सभी का क्या करें ,
बड़ा ही तंग महगार्इ का घेरा हो गया।
.
मौलिक अप्रकाशित
Comment
इस खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय राम अवध जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय राम अवध जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई
आ0 राम अवध जी सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।
बेहद खूबसूरत गज़ल कही है आ0 राम अवध जी.... बधाई हो.....
बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने हर शेर पसंद आया ,दिली दाद कबूलें .
सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी
जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,
सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।
कटेगी राम जाने किस तरह से जिन्दगी ,
मगर के साथ मछली का बसेरा हो गया।
यह दो शेर ख़ास पसंद आये.
हार्दिक शुभकामनाएं
आदरणीय राम अवध भाई , बेमिसाल गज़ल के लिये और उम्दा शेरों के लिये आपको ढेरों बधाईयाँ !!!!
समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,
यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया। ---------------------वाह वा !! लाजवाब मतला !!!!
zinda tasveer ban gayi hai khoobsoorat ashaaro se .....
tashveer ki khoobsoorati me chhar chand lagaye hai .....
समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,
यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया।
जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,
सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।
You First gave the meter of the poem so is the Gazal. Pl carry on .
वाह वाह आदरणीय क्या कहने बेहतरीन ग़ज़ल खूबसूरत अशआर हुए हैं बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
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