फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
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धीरे- धीरे सब हुनर दिखने लगा।
उसमें कितना है जहर दिखने लगा।
आँख में कैसी खराबी आ गर्इ,
राहजन ही राहबर दिखने लगा।
लाख डींगे मारिये बेषक मगर,
आप के चेहरे से डर दिखने लगा।
जो दवायें दी थीं चारागर ने कल,
उन दवाओं का असर दिखने लगा।
जो कभी झुकता नहीं था दोस्तो
अब वही सर पाँव पर दिखने लगा।
जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये,
आदमी भी जानवर दिखने लगा।
चलते-चलते पाँव बोझिल हो गये,
है बहुत मुषिकल सफर दिखने लगा।
जबसे आया है यहाँ पर जलजला,
तबसे बेरौनक शहर दिखने लगा।
दोस्तो पीने के पानी के लिये,
एक दिन होगा गदर दिखने लगा।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह वाह आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने सादर बधाई स्वीकारें
जय हो
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय बधाई स्वीकारें.
//आपकी उद जबान में भले ही चेहरा को .चेह्रा लिखा जाता हो और जहर को .जह्र शहर को शह्र परन्तु हिन्दी वालों ने जहर शहर चेहरा ही पुस्तकों में पढ़ा है//
आदरणीय रामअवध सर भाषा आपकी या मेरी नही होती हिन्दुस्तान की पृष्ठभूमि में ये बात तो सही है, आपकी उर्दू मेरी हिन्दी भाषा इस तरह की बातें करना पूरी तरह अप्रासंगिक है, शहर या शह्र, जहर या जह्र इसपे पहले भी चर्चा हो चुकी है लेकिन निष्कर्ष कुछ नही निकला इसलिये शह्र और जह्र को सही माना गया है, लेकिन उच्चारण के लिहाज से चेहरा का वज्न 22 ही होगा। वैसे बहुवचन ''हादसात'' नही बल्कि ''हवादिस'' होता है।
आदरणाीय शकूर जी इन दिनों हिन्दी में भी गजलें कही जारही हैं।हिन्दी की अपनी प्रकृति है और उर्दूकी अपनी प्रकृति। आपकी उद जबान में भले ही चेहरा को .चेह्रा लिखा जाता हो और जहर को .जह्र शहर को शह्र परन्तु हिन्दी वालों ने जहर शहर चेहरा ही पुस्तकों में पढ़ा है। उसी उच्चारण में हम हिन्दी वाले पढ़ते हैं और लिखते हैं।उदर्ू भाषा में हादसा का बहुवचन हादसात होता है परन्तु हिन्दी में बहुवचन हादसे या हादसों होता है। अब आपकी भाषा में गलत हो सकता है परन्तु हिन्दी व्याकरण से सही है।
दोस्तो पीने के पानी के लिये,
एक दिन होगा गदर दिखने लगा।..... बेहद उम्दा समसामयिक गज़ल... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय
आदरणीय राम अवध जी बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने हाँ कहीं कही टंकण त्रुटी है ---नीचे आदरणीय नादिर खान जी ने चेहरे की मात्रा पर संशय किया है आपकी गणना २२ सही है किन्तु चेहरा --चेह्रा लिखा जाता है ग़ज़ल में उसी तरह --जह्र - जहर
शह्र - शहर लिखा जाता है हम भी समवेत सीख ही रहे हैं ओ बी ओ से.आपके सभी शेर बहुत पसंद आये तहे दिल से दाद कबूलें
जो कभी झुकता नहीं था दोस्तो
अब वही सर पाँव पर दिखने लगा।....चुनाव आ रहे हैं ऐसा तो होना ही है ..हकीकत है
जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये,
आदमी भी जानवर दिखने लगा।..............................बिलकुल सही कहा है आपने
चलते-चलते पाँव बोझिल हो गये,
है बहुत मुषिकल सफर दिखने लगा।.............षि...मुश्किल ..कर लें
दोस्तो पीने के पानी के लिये,
एक दिन होगा गदर दिखने लगा.........................सबसे बड़ी चिंता की बात ..लोग नहीं चेतेंगे तो दुखद होंगे परिणाम
बेषक.....बेशक कर लें
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये,
आदमी भी जानवर दिखने लगा।.........यह शेर बहुत पसंद आया
सार्थक संदेशप्रद गजल पर बधाई आदरणीय राम अवध जी
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