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मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ? ( अरुण कुमार निगम)

मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?

गीत मेरे सुन वाह करोगी ?

सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया  

जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया

क्या जीवन से डाह करोगी ?

कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता

काल-चक्र  कब  मेरे बस में , कौन  भला है इससे जीता

अब मुझसे क्या चाह करोगी ?

श्वेत श्याम रतनार दृगों में , श्वेत पुतलियाँ  हैं एकाकी  

काले कुंतल  श्वेत हो गए , सिर्फ झुर्रियाँ तन पर बाकी

क्या इनको फिर स्याह करोगी ?

आते-जाते जल-घट घूँघट , कब पनघट ने प्यास बुझाई

स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई  

अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

[मौलिक व अप्रकाशित]

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 13, 2013 at 12:11pm

आदरणीय अरुण जी ..आपकी इस रचना का कोई जवाब नहीं ...बार बार पढने को बिबश करती वाकई एक शानदार रचना ..

आते-जाते जल-घट घूँघट , कब पनघट ने प्यास बुझाई

स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई  

अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?..ये पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद आयीं ..सादर 

Comment by umesh katara on November 13, 2013 at 9:01am

सुख दुख की आपाधापी ने,रात दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता .प्रणय निवेदन कर न पाया
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
एक सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति के लिये बधायी आदरणीय अरुण निगम जी 

Comment by vijay nikore on November 13, 2013 at 4:55am

आपका भावनात्मक उन्मेष कविता में भरे हुए मेघ की तरह उमड़ कर बरसा है ! यह मन को विभोर कर देने वाली ऐसी अनूठी रचना बार -बार पढने को मन करता है ! असीम सराहना के साथ |

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 12, 2013 at 11:50pm

बहुत सुन्दर आदरणीय। हार्दिक बधाई

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 12, 2013 at 10:44pm
वाह अरूणजी वाह साहसिक,वैचारिक, अनुपम प्रयोग, बधाई बधाई
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 12, 2013 at 8:42pm

आ0 अरून सर जी,    बहुत सुन्दर गीत...आनन्द आ गया।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर,

Comment by नादिर ख़ान on November 12, 2013 at 3:54pm

सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया  

जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया

क्या जीवन से डाह करोगी ?

कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता

काल-चक्र  कब  मेरे बस में , कौन  भला है इससे जीता

अब मुझसे क्या चाह करोगी ?

आदरणीय अरुण निगम जी, बहुत उम्दा गीत, क्या कहने.... लाजवाब प्रस्तुति । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 12, 2013 at 2:13pm

क्या बात है सर जी बेहद खूबसूरत

मृत्यु को वरने का साहस करना

ग़ज़ब

इस सुन्दर प्रस्तुति पर ढेरों बधाई सर जी

जय हो  जय हो  जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 1:52pm

आदरणीय अरुण निगम भाई , बहुत सुन्दर रचना , मृत्यु को भी आपने प्रेयसी के रूप मे देखा,  बहुत अनोखा रिश्ते की हिम्मत के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2013 at 1:16pm

आदरणीय अरूण सर लाजवाब प्रस्तुति, वाह  शुरू से आखिर तक आपकी ये रचना बाँधे रखने मे कामयाब है, आपको बहुत बहुत बधाई

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