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लघुकथा : कीमत (गणेश जी बागी)

शास्त्री जी बहुत खुश हैं, नए घर का आज गृह प्रवेश समारोह है ।  विदेश से कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट की पढ़ाई पूर्ण कर इकलौता बेटा भी कल घर पहुँच गया था ।
"पापा, गेस्ट आ गये हैं आप कहें तो डिनर स्टार्ट करवा दूँ"
"नहीं बेटा, कुछ विशिष्ट अतिथियों का मैं इन्तजार कर रहा हूँ पहले वो आ जाएँ फिर भोजन प्रारम्भ कराते हैं" शास्त्री जी ने बेटे को समझाया ।
"विशिष्ट अतिथि कौन पापा ?"
"इस घर को अपने श्रम और पसीने से बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर"
"उफ्फ ! आप भी न पापा, उनको उनकी कीमत दे दी, बात ख़त्म"
"बेटा, पसीने की कीमत देने की औकात मुझ में क्या किसी में नहीं है, शायद यह बात मैनेजमेंट में नहीं पढ़ाई जाती ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Kiran Arya on December 11, 2013 at 3:07pm

बहुत सुंदर और सार्थक सन्देश देती लघु कथा ...........सर आपको जब भी पढ़ते है मन खुश हो जाता है .....शुभं

Comment by coontee mukerji on December 10, 2013 at 10:27pm

बहुत सुंदर एवम शिक्षाप्रद लघु कथा अपने उद्देश्य को सार्थक करता हुआ.

शुभकामनाएँ

कुंती

Comment by Tapan Dubey on December 10, 2013 at 6:32pm
क्या बात क्या बात आदरणीय गणेश जी

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 10, 2013 at 12:44pm
आदरणीया वंदना जी, आपने लघुकथा की व्याख्या कर लेखन सार्थक कर दिया, आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी हेतु बहुत बहुत आभार ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 10, 2013 at 12:43pm
आदरणीय शारदेन्दु मुखर्जी जी, आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी इस लघुकथा पर प्राप्त हुई, सच ह्रदय गदगद है, बहुत बहुत आभार आदरणीय ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 10, 2013 at 12:41pm

आभार प्रिय राम भाई ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 10, 2013 at 12:26pm

आदरणीय बागी सर ..आत्म चिंतन के लिए बिबश करती हुई  एक सशक्त  लघु कथा ..बिलकुल सच कहा है आपने हम इतने प्रोफेशनल हो गए हैं की  मानवीय सम्बेदना के लिए कोई जगह ही नहीं बची है ..आपकी यह रचना समाज के लिए एक सन्देश है ..आपके इस चिंतन को सलाम ..सादर प्रणाम के सा

Comment by Meena Pathak on December 10, 2013 at 11:53am

बहुत सुन्दर सन्देश देती लघुकथा हेतु बधाई आप को आदरणीय बागी जी | सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 10, 2013 at 11:20am

आदरणीय बागी जी

'कीमत'' लघु कथा की कोई कीमत नहीं है i बेशकीमती है यह कथा  i धन्य है भारत की वह विचारधारा जो परिश्रम  और पसीने के बिन्दुओ  का सम्मान  करना जानती है i उतना ही सच यह भी है कि नयी पीढी ऐसी सोच और संस्कार से दूर होती जा रही है  i हमें जाग्रति के ऐसे सन्देश साहित्य के माध्यम से समाज को देने चाहिए i  बागी जी की सशक्त सोच के समक्ष मै नतमस्तक हूँ i  बहुत - बहुत बधाई हो श्रीमन i


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2013 at 11:08am

बिलकुल सही सन्देश है, आखिर पसीने की क़ीमत कौन चुका पाया है आज तक ? लघुकथा शिल्प और कहन के दृष्टिकोण से बेहद कसी हुई और चुस्त है, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें भाई गणेश बागी जी.

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