For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में - शिज्जु

22- 1212- 1122

हर रात ख़्वाब के मैं सफ़र में

इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में

 

कुछ आज मखमली सी लगी धूप

क्या बात है न जाने सहर में

 

अंगारों पे चला मैं सहम के

इक हौसला भी था मेरे डर में

 

यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग

है मेरा नाम आज खबर मे

 

हर शै पे हर मुकाम पे तू थी

तन्हा हुआ न तेरे नगर में

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1034

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:25pm

आदरणीय अभिनवजी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:24pm

आदरणीया किरण जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 12, 2013 at 7:38am

आदरणीय शिज्जू भाई , हमेशा की तरह आपकी ये ग़ज़ल भी बहुत खूबसूरत है !!!! आपको हार्दिक बधाइयाँ !!!!

Comment by Priyanka singh on December 11, 2013 at 10:26pm

अंगारों पे चला मैं सहम के

इक हौसला भी था मेरे डर में.....

यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग

है मेरा नाम आज खबर मे......

वाह सर .....खूब कहा अपने ....लाजवाब .....बधाई सर ....

Comment by MAHIMA SHREE on December 11, 2013 at 8:42pm

कुछ आज मखमली सी लगी धूप

क्या बात है न जाने सहर में

 

अंगारों पे चला मैं सहम के

इक हौसला भी था मेरे डर में..... बेहद उम्दा आ. शिज्जू जी हार्दिक बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on December 11, 2013 at 7:43pm

इस  सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आपको भाई सिज्जू   जी। ...   सादर 

Comment by Tapan Dubey on December 11, 2013 at 5:43pm
बेहतरीन गजल के लिए बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 11, 2013 at 4:56pm

आदरणीय शिज्जू भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , आपको तहे दिल से मुबारक बाद !!!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 11, 2013 at 4:51pm

आदरणीय शिज्जू जी ..ये ग़ज़ल भी हमेशा की तरह शानदार है ..मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनाएं ..हा आदरणीय सिर्फ और सिर्फ अपनी जिज्ञासा वश एक सवाल जो मेरे जेहन में है उसे पूंछने के हिम्मत कर पा रहा हूँ ..

अंगारों पे चला मैं सहम के

इक हौसला भी था मेरे डर में......आपके हौसले के साथ चले हैं उसमे थोडा डर हो सकता है आप सहम के अंगारों पे चलते तो डर में हौसला लगता .थोडा उलझा हुआ हूँ ..शायद मैं गलत ही हूँ ..बस आपकी सोच की आवृति तक आना चाहता हूँ ..कृपया अन्यथा न लीजियेगा ..सादर 

Comment by coontee mukerji on December 11, 2013 at 4:48pm

अंगारों पे चला मैं सहम के

इक हौसला भी था मेरे डर में...........बहुत खूब.

बधाई शिज्जू जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service