पहले मौत दे, फिर जिंदगानी कौन देता है
मुकम्मल हो सके ऐसी कहानी कौन देता है,
यहां तालाब और नदियां कई बरसों से सूखी हैं
खुदा जाने कि पीने को ये पानी कौन देता है,
हमें तो जिंदगी ठहरी हुई इक झील लगती है
मगर हर वक्त दरिया को रवानी कौन देता है,
जमीं से आसमां तक का सफर हम कर चुके लेकिन
नहीं मालूम मंजिल की निशानी कौन देता है,
परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है,
अतुल ये जानता हूं कि बुढापा आएगा इक दिन
मगर फिर चार दिन की ये जवानी कौन देता है।।
— अतुल कुशवाह
- मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ.कूंटी जी, अरुण जी, कल्पना जी, राहुल देव जी, डॉ.प्राची जी और लक्ष्मण धामी जी...आप सबकी प्रेरक प्रतिक्रियाओं के लिए आप सबका बहुत सारा आभार और शुक्रिया। और आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर, आपने जो मार्गदर्शन कराया है, उसे मैं अब हमेशा ध्यान रखूंगा और काव्य लेखन को व्याकरण के अनुरूप ही ढालने की कोशिश करूंगा।
सादर
अतुल
आदरणीय अतुल भाई एक अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है,.............बहुत खूब
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ यनि मुफ़ाईलुन की चार आवृतियों पर कही इस ग़ज़ल के मतले के साथ क्या कर दिया है आपने ?
या अनायास ही अशार के मिसरे हजज के अनुसार सध गये हैं ?
मक्ते में भी परेशानी हुई है. उला का कि गलत है/
शुभेच्छाएँ
परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है,.........हौसलों की इस उड़ान को मेरी बहुत बहुत बधाई
हर शेर लाजवाब! बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय अतुल जी
अतुल भाई बेहद सुन्दर ग़ज़ल सभी शेर अच्छे लगे पसंद आये वीनस भाई जी जिस ओर इशारा किया है उसे देख लें. मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.
बहुत सुंदर....गज़लों के सहारे आने बहुत कुछ कहा है. हार्दिक बधाई.
परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है .... शानदार शेर कहा है .. हासिले ग़ज़ल है
मतला और मक्ता पर बहर के एतबार से नज़ारे सानी फरमाएं
हमें तो जिंदगी ठहरी हुई इक झील लगती है
मगर हर वक्त दरिया को रवानी कौन देता है,
जमीं से आसमां तक का सफर हम कर चुके लेकिन
नहीं मालूम मंजिल की निशानी कौन देता है,
परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है,
बहुत बढ़िया आदरणीय अतुल जी
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