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जमीं पर आसमां उतर आया...

मेरे जब वो करीब आती है
सांस रुककर हमें सताती है
बात दिल की जो कहना चाहूं तो
बात कुछ और निकल जाती है।।

ये जो चिट्ठी किसी की आई है
अब वो अपनी नहीं पराई है
खाक मिलता है मुझे जिंदगी से
जिंदगी जून है जुलाई है।।

उनका चेहरा जब नजर आया
मेरी बातों में तब असर आया
करने इजहार अपनी प्रेयसी से
जमीं पर आसमां उतर आया।।

- मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2014 at 9:50am

आपकी यहाँ प्रथम रचना पढ़ रहा हूँ | स्वागत है आपका श्री अतुल कुशवाहा ही | बहुत सुन्दर भाव रचना के लिए बधाई 

Comment by atul kushwah on February 19, 2014 at 11:48pm


आदरणीय ब्रजेश सर, उत्साहवर्धन के लिए आभार। सादर—अतुल

Comment by बृजेश नीरज on February 19, 2014 at 11:41pm

अच्छी रचना है! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by atul kushwah on February 19, 2014 at 7:21pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, सारथी जी और आदरणीया अन्नपूर्णा जी..आप सभी का मैं तहेदिल से आभार जताना चाहता हूं कि इतना समय निकालकर मेरा उत्साह बढाया, इन चार पंक्तियों के साथ...
इन बडे लोगों में अपना भी बसर होने लगा
हम भी शहरी, गांव मेरा भी शहर होने लगा,
हाथ में थामी कलम तो खुद—ब—खुद चलने लगी,
आप लोगों की दुआओं का असर होने लगा।। — सादर—अतुल

Comment by annapurna bajpai on February 19, 2014 at 6:47pm

रचना के भाव अच्छे है आ0 अतुल जी । 

Comment by Saarthi Baidyanath on February 19, 2014 at 10:32am

जिंदगी जून है जुलाई है।।...इस उपमा  के लिए विशेष बधाई !..बढ़िया रचना ..सुन्दर भावों सहित !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 19, 2014 at 1:17am

बेहद सुंदर भाव, बधाई आदरणीय अतुल जी

Comment by atul kushwah on February 17, 2014 at 6:32pm

आदरणीय अलीन जी, बहुत—बहुत शुक्रिया। सादर— अतुल

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 17, 2014 at 5:59pm

ये जो चिट्ठी किसी की आई है
अब वो अपनी नहीं पराई है
खाक मिलता है मुझे जिंदगी से
जिंदगी जून है जुलाई है।।.......................कुछ हटकर ............अच्छा लगा.

Comment by atul kushwah on February 17, 2014 at 5:07pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, हौसला देने के लिए आभार। सादर—अतुल

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