अहसासों को
प्रज्ञ तुला पर कब तक तोलूँ
चुप रह जाऊँ
या अन्तः स्वर मुखरित बोलूँ
जटिल बहुत है
सत्य निरखना-
नयन झरोखा रूढ़ि मढ़ा है,
यद्यपि भावों की भाषा में
स्वर आवृति को खूब पढ़ा है
प्रति-ध्वनियों के
गुंजन पर इतराती डोलूँ
प्राण पगा स्वर
स्वप्न धुरी पर
नित्य जहाँ अनुभाव प्रखर है
क्षणभंगुरता - सत्य टीसता
सम्मोहन की ठाँव, मगर है
भाव भूमि पर
आदि-अंत के तार टटोलूँ
श्वास-श्वास में
कण-कण जीवन
जी लेने की रख अभिलाषा,
अंतर्मन ही छद्म जिया यदि
जीवन की फिर क्या परिभाषा
निज संचय में
मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
सुंदर.हार्दिक बधाई
सुन्दर काव्य धारा प्रवाहित हुयी
श्वास-श्वास में
कण-कण जीवन
जी लेने की रख अभिलाषा,
अंतर्मन ही छद्म जिया यदि
जीवन की फिर क्या परिभाषा
उत्साह और जीवन संघर्ष की सीख देती अच्छी रचना
भ्रमर ५
अध्यात्म के वस्तु के साथ, चिरकाल से चलते प्रज्ञा, मनस के द्वन्द के बीच सत्य की गवेषणा को नवगीत के शिल्प में ढालकर बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी है आ0 प्राची मैम आपने। आपका व्यक्तिगत अंतर्प्रेक्षण और उसका प्रस्तुतिकरण लाजवाब है। बधाई स्वीकारें।
ऊहापोह और विभ्रम का होना ही यह प्रमाणित करता है के सचेत अवस्था और सजगता के लिए मनस प्रयासरत है.
इस अच्छे और सफल गीत के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई, आदरणीया, और हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीया राजेश कुमारी जी ,
कई बार बतौर पाठक किसी रचना में हम वो ढूंढ लेते हैं जो हम मानना चाहते हैं..और फिर रचना भी वही संतुष्ट करती सी प्रतीत होती है.. इस नवगीत के साथ कुछ वक़्त बिताने और उत्साहवर्धन करने के लिए मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ..
सादर.
आदरनी बृजेश जी
आपको नवगीत सन्निहित कथ्य व भाव बतौर पाठक संतुष्ट कर सके..यह जान बहुत अच्छा लगा
आपका हार्दिक आभार
आदरणीय अखिलेश जी
नवगीत की अंतर्निहित आवाज़ तक पहुँचने के लिए सादर धन्यवाद
श्वास-श्वास में
कण-कण जीवन
जी लेने की रख अभिलाषा,
अंतर्मन ही छद्म जिया यदि
जीवन की फिर क्या परिभाषा
निज संचय में
मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ----दुनिया से छुपा लेंगे किन्तु अपनी कमियों को अपने छद्म रूप को खुद से कैसे छुपा पायेंगे मन दर्पण कैसे चेहरा देखेंगे ...बहुत सच्चाई है इन पंक्तियों में, बहुत सुन्दर नव गीत रचा है ,बहुत -बहुत बधाई आपको प्रिय प्राची जी.
हम वैसा जीवन नहीं जीते जैसा हमारा अंतर्मन चाहता है. मन/चेतना के भावों और वास्तविक जीवन की सच्चाई के द्वन्द को इस नवगीत के माध्यम से आपने बहुत ही सुन्दर शब्द दिए हैं.
इस सुन्दर नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीया प्राची जी!
आदरणीया प्राचीजी
यह नवगीत मन से ज़्यादा आत्मा की आवाज है , अंतर्मन के भावों को सच्चाई से व्यक्त किया है, हार्दिक बधाई
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