कभी यूँ भी हुआ है
कि
मन ही मन
उन्हें बुलाया
और वो दौड़े आये हैं...
मीलों के फासलों को झुठलाते,
मुलाकातों की सौगातें लिए,
दबे पाँव
नींदों में....
मुमकिन नहीं
जिन बीजों का पनपना भी,
उनकी खुशबू से
ख़्वाबों में महकती हैं
फिजाएं अक्सर....
और,
मैं मुस्कुराती हूँ ....
क्योंकि-
दिवास्वप्न
जिनकी मंजिल तक
कोई राह नहीं जाती
शुक्र है
वहाँ
सपनों की पहुँच है....!
(08-04-2012) मौलिक
ओबीओ पर ही पूर्व प्रकाशित हुई थी पर अब ओबीओ पर नहीं है..इसलिए पुनः पोस्ट कर रही हूँ
Comment
दिवास्वप्न तक स्वप्न की पहुँच है ! .. सही है.
सादर
दीदी बहुत ही सुन्दर रचना सपने अपने भी हैं और पराये भी सपने बहुत कुछ दे जाते हैं और अगले ही पल सब वापस भी ले जाते हैं. इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीया प्राची जी , काल्पनिक , अवास्तविक खुशियाँ भी कुछ देर के लिये खुशी तो देती ही हैं , कभी कमज़ोर सहारा भी मज़्बूती दे जाती है ।
और,
मैं मुस्कुराती हूँ ....
क्योंकि-
दिवास्वप्न
जिनकी मंजिल तक
कोई राह नहीं जाती
शुक्र है
वहाँ
सपनों की पहुँच है....! --------- बहुत खूब , रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
आ0 प्राची जी, बहुत सुन्दर भावपूर्ण कविता...अच्छी लगी । बधाई स्वीकारों। सादर,
पूर्व में तो पढने में नहीं आई | दिवा स्वपन सुख की अनुभूति तो कराते ही है, भले मंजिल वहा तक न जाती है |
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया
बहुत सुन्दर ..स्वपन की कल्पनाएँ यथार्थ से अधिक सुख दे जाती हैं .. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !
आ० प्राची बहन इस उम्दा कृति के लिए हार्दिक बधाई l
आ० प्राची जी,
गाँव में एक कहावत है -पुराना चावल ही पथ्य होता है.आपकी इस पुरानी कविता से मुझे "मधुशाला" का स्मरण हो आया- और पुरानी होकर मेरी , और नशीली मधुशाला.
बहुत - बहुत बधाई " दिवास्वप्न "को सुंदरता से उकेरने के लिए.
जिनकी मंजिल तक
कोई राह नहीं जाती
शुक्र है
वहाँ
सपनों की पहुँच है...!
सपने कभी नींद से बाहर आकर दुःख दे जाते है तो कहीं कुछ समय बिताने की सामग्री भी जुटा लेता है इंसान. बहुत ही सुंदर सहज शब्दों में आपकी यह रचना बहुत पसंद आई, बधाई स्वीकारें आदरणीया डा.प्राची जी
जिनकी मंजिल तक
कोई राह नहीं जाती
शुक्र है
वहाँ
सपनों की पहुँच है॥ सपनों मे हमारी कई छुपी हसरतें चुपके से पूरी हो जाती है ॥ बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
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