For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- कि दरिया पार होकर भी किनारे छूट जाते हैं

१२२२       १२२२          १२२२         १२२२

ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं

कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं

ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की

ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं

ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना

बहुत जल्दी ही  ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं

खुदी में दम नहीं है गर तो हासिल कुछ नहीं होता

कि दरिया पार होकर भी किनारे छूट जाते हैं

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 996

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 6:09pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है ..दिली दाद क़ुबूल करें 

Comment by Ravi Prabhakar on July 7, 2014 at 6:06pm

आदरणीय महोदया,

बहुत अच्‍छी गजल कही आपने, एक-एक शेअर काबिले दाद हैा

/ ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं

कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं /

बहुत खूब । आज के सामाजिक परिवेश पर बिल्‍कुल स्‍टीक बैठता शेयर

बधाई स्‍वीकार करें

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 5:12pm

आदरणीय संजु जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 3:24pm

आदरणीया संजू जी , खूब सूरत गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 7, 2014 at 2:51pm

आदरणीया अआप्की आज की रचना कीतारीफ़ की जाए कम है ..बेहतरीन ..बेहतरीन ..सादर बधाई के साथ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 7, 2014 at 12:10pm

आदरणीया

बहुत सुन्दर गजल हुयी है i  हर शेर उम्दा है i आपको बधाई i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 7, 2014 at 9:02am

बहुत बेहतरीन गजल आदरणीया संजू जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें

ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना

बहुत जल्दी ही  ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं................बहुत खूब

Comment by atul kushwah on July 6, 2014 at 11:38pm

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं....वाह! उम्दा गजल... बधाई.

Comment by Santlal Karun on July 6, 2014 at 11:35pm

आदरणीया संजू जी, आप ने कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से एक अच्छी-सी ग़ज़ल प्रस्तुत की  है; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

Comment by कल्पना रामानी on July 6, 2014 at 10:20pm

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं....वाह!

उम्दा गजल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई प्रिय संजु जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
40 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
7 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service