For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है

बह्र : हज़ज़ मुसम्मन सालिम

मुलायम फूल सा हो दिल या दरपन टूट जाता है,
सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है,

जमीं जब रार बोती है सगे दो भाइयों में तो,
मधुर संबंध आपस का पुरातन टूट जाता है,

तुम्हारी याद में मैया मैं जब आंसू बहाता हूँ,
दिवारें सील जाती हैं कि आँगन टूट जाता है,

पृथक प्रारब्ध ने हमको किया है जानता हूँ पर,
विरह की वेदना में जूझके मन टूट जाता है,

भले अभिमान करती हों स्वयं पे खूब बरसातें,

झड़ी नैनों की लगती है तो सावन टूट जाता है,

समस्याओं से होता है नहीं विचलित कभी लेकिन,
क्षुधा औ प्यास बढ़ती है तो निर्धन टूट जाता है,

खड़ा रणक्षेत्र में बेहद भले हो शत्रु बलशाली,
समझदारी व साहस हो तो दुश्मन टूट जाता है.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 812

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:36pm

बहुत बढ़िया आदरणीय अरुण भाई शानदार ग़ज़ल है हरेक शेर लाजवाब है बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 8, 2014 at 11:29am

जमीं जब रार बोती है सगे दो भाइयों में तो,
मधुर संबंध आपस का पुरातन टूट जाता है,----सोलह आने सच 

भले अभिमान करती हों स्वयं पे खूब बरसातें,

झड़ी नैनों की लगती है तो सावन टूट जाता है,------वाह्ह्ह वाह्ह्ह आँसुओं की झड़ी और बरसात का बिम्ब सुभानल्लाह 

समस्याओं से होता है नहीं विचलित कभी लेकिन, 
क्षुधा औ प्यास बढ़ती है तो निर्धन टूट जाता है,------सच कहा भूख प्यास की मार तोड़ेगी नहीं तो क्या करेगा एक गरीब .....जबरदस्त कहन

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है प्रिय अरुन  ,,,दिली दाद कबूलिये 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 8, 2014 at 11:21am

अरुण जी ....आपकी यह ग़ज़ल भी खूब भाई ..

मुलायम फूल सा हो दिल या दरपन टूट जाता है,
सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है,......संदेह किसी को नहीं बख्सता .बिलकुल सही 

जमीं जब रार बोती है सगे दो भाइयों में तो,
मधुर संबंध आपस का पुरातन टूट जाता है,..................घर घर गवाह है इन पंक्तियों का 

तुम्हारी याद में मैया मैं जब आंसू बहाता हूँ,
दिवारें सील जाती हैं कि आँगन टूट जाता है,.............माँ का तो कोई विकल्प ही नहीं ...आँगन टूट जाता है .थोडा दुबिधा में हूँ 

पृथक प्रारब्ध ने हमको किया है जानता हूँ पर,
विरह की वेदना में जूझके मन टूट जाता है,....................यहीं तो सब विवश है 
...

भले अभिमान करती हों स्वयं पे खूब बरसातें,

झड़ी नैनों की लगती है तो सावन टूट जाता है,

समस्याओं से होता है नहीं विचलित कभी लेकिन, 
क्षुधा औ प्यास बढ़ती है तो निर्धन टूट जाता है,.....यहाँ मैं भी नीलेश जी से सहमत हूँ

खड़ा रणक्षेत्र में बेहद भले हो शत्रु बलशाली,
समझदारी व साहस हो तो दुश्मन टूट जाता है....बिलकुल सही 

आपकी ग़ज़ल में हिंदी का जबरदस्त प्रयोग आपकी ग़ज़लों के सबसे अलहदा रखता है ..ढेरों बधाई के साथ 

Comment by वेदिका on July 8, 2014 at 9:33am

वाह! वाह! बेहद सुन्दर गजल हुयी है आ० अनंत जी!

तुम्हारी याद में मैया मैं जब आंसू बहाता हूँ,
दिवारें सील जाती हैं कि आँगन टूट जाता है, ....... /आँगन का टूटना/ मुझे यह समझ नही आया| मार्गदर्शन दीजिये 

खड़ा रणक्षेत्र में बेहद भले हो शत्रु बलशाली,
समझदारी व साहस हो तो दुश्मन टूट जाता है ...लाजवाब शेअर हुआ है| 

बेहतरीन हिंदी गजल के लिए अनंत शुभकामनाएं आदरणीय अनंत जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 8, 2014 at 9:26am

वाह, वाह, वाह  आदरणीय अरुण अनंत जी,

विचारों की परिपक्वता हर अश'आर में परिलक्षित हो रही है. रूह से निकली पंक्तियों को नमन.......

पृथक प्रारब्ध ने हमको किया है जानता हूँ पर,
विरह की वेदना में जूझके मन टूट जाता है,

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 8, 2014 at 9:03am

बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है ..बधाई .
क्षुधा औ प्यास ..पर्यायवाची हैं सो एक साथ होना थोडा अखर रहा है ..
इस शेर के लिए विशेष बधाई ..

भले अभिमान करती हों स्वयं पे खूब बरसातें,

झड़ी नैनों की लगती है तो सावन टूट जाता है,


सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 7, 2014 at 6:30pm

बहुत सुन्दर अरुण जी i

 

भले अभिमान करती हों स्वयं पे खूब बरसातें,

झड़ी नैनों की लगती है तो सावन टूट जाता

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service