For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाथ से यूँ सरसराती सी निकाली जिंदगी
खूब कोशिश की मगर कैसे संभाली जिंदगी


लाख पटके पांव फिर भी जो लिखा था वो हुआ
हर तजुर्बे कर के देखे और खंगाली जिंदगी


जिंदगी की राह में चलते हुए ऐसा लगा
है मरासिम कुछ पुराना देखी भाली जिंदगी


है बड़ी बेबाक सी उज्जड गवारों सी लगी
अब मुझे कितना कचोटे एक गाली जिंदगी

.
मौलिक एवं अप्रकाशित
विजय कुमार मनु

Views: 596

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2015 at 11:57am

लाख पटके पांव फिर भी जो लिखा था वो हुआ
हर तजुर्बे कर के देखे और खंगाली जिंदगी ------ लाजवाब बात कही , आदरणीय विजय भाई , बधाई ॥

Comment by ram shiromani pathak on February 1, 2015 at 10:07am
बहुत प्यारी ग़ज़ल आदरणीय।।हार्दिक बधाई
भाई मिथिलेश जी से सहमत हूँ।।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2015 at 9:59am

बहुत बढ़िया आदरणीय विजयजी बहुत बहुत बधाई आपको।

मैं भी मिथिलेश जी से सहमत हूँ :-)

Comment by somesh kumar on January 30, 2015 at 11:36am

ज़िन्दगी गाली की तरह कचोटे यह बात नागवार लगी |गज़ल अच्छी पर इसमें लहजा पूरी तरह शिकायती क्यों ?

Comment by vijay on January 29, 2015 at 8:12am
मिथलेश जी आभार आपकी बेशकीमती राय के लिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 29, 2015 at 12:13am

बढ़िया अशआर ... सभी बह्र में है.... सिर्फ एक शेर और कह दे तो ग़ज़ल मुकम्मल हो जाए. अरुज के अनुसार ग़ज़ल में कम से कम पांच अशआर होने चाहिए. हरेक शेर में बह्र-ए-रमल के अरकान फाइलातुन-फाइलातुन-फाइलातुन-फाइलुन को क्या खूब निभाया है लगता है आदरणीय विजय जी आप बह्र को खूब जानते है. लग रहा है जैसे पिछली रचना, ग़ज़ल के नाम से  हमारी परीक्षा लेने के लिए पोस्ट की गई थी. भाई बहुत खूब. बधाई स्वीकार करे और में शेर-दर-शेर दिल से दाद कुबूल कीजिये. 

Comment by vijay on January 28, 2015 at 10:43pm
आभार सभी गुनीजनो का
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 28, 2015 at 9:57pm

बढ़िया गजल i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 28, 2015 at 8:15pm

आदरणीय विजय कुमार जी सुन्दर रचना हार्दिक बधाई ! सादर  

Comment by Sushil Sarna on January 28, 2015 at 7:53pm

ज़िंदगी के दर्दीले पक्ष को दर्शाती सुंदर ग़ज़ल आदरणीय  … हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
34 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
34 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
35 minutes ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service