For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मानव का मान करो ….

मानव का मान करो ….

सिर से नख तक
मैं कांप गया
ऐसा लगा जैसे
अश्रु जल से
मेरे दृग ही गीले नहीं हैं
बल्कि शरीर का रोआं रोआं
मेरे अंतर के कांपते अहसासों,
मेरी अनुभूतियों के दर पे
अपनी फरियाद से
दस्तक दे रहे थे
दस्तक एक अनहोनी की
एक नृशंस कृत्य की
एक रिश्ते की हत्या की
दस्तक उन चीखों की
जिन्हें अंधेरों ने
अपनी गहराई में
ममत्व देकर छुपा लिया
मैं असमर्थ था
अखबार का हर अक्षर
मेरी आँखों की नमी से
कांप रहा था
क्या एक पिता
जो परिवार का वट वृक्ष होता है
जो सबकी रक्षा करता है
जिसकी छाँव में
सब अपने आपको
सुरक्षित समझते हैं
क्या वही बागबाँ
अपने आँगन की मासूम कलियों की
असुरक्षा का कारण बन सकता है
क्या अपने ही संरक्षक द्वारा
तीन वर्ष की मासूम के साथ ……..
किसका कलेजा नहीं काँपेगा
ये खबर पढ़ कर
और कितना पतन होगा
इस मानव का
जो दिन प्रतिदिन
हवस का पुजारी होता जा रहा है
अपने जीवन की हर परत को
अपने कर्मों से
एक निंदनीय घृणा के रंग से
रंगता जा रहा है
इसके चलते
आज परिवार की हर कड़ी
अपने आप को असुरक्षित
मानने लगी है
पति-पत्नी ,भाई-बहन,बेटे-बेटी
कितने पावन हैं ये ईश्वरीय रिश्ते
जिस पावन स्नेह के अटूट बंधन से
ये सृष्टि बंधी है
उस पावन स्नेह की डोरी को
क्यूँ अपनी वहशत से
तार तार करते हो
रहम करो, होश में आओ
अपनी हवस को
अपना कर्म न बनाओ
कम से कम अपने अंश को तो
अपनी दरिंदगी का शिकार तो न बनाओ
इस ईश्वरीय प्रदत चोले में निहित
मानवीय कर्मों का मान करो
अरे मानव हो मानव बन के
मानव का मान करो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:31pm

आदरणीय    जितेन्द्र पस्टारिया जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:30pm

आदरणीय    मिथिलेश वामनकरजी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:30pm

आदरणीय   Er. Ganesh Jee "Bagi" जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:29pm

आदरणीय   Dr. Vijai Shankerजी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on January 30, 2015 at 7:29pm

आदरणीय   Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।  आभार  विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 29, 2015 at 12:10pm

सरना जी

संवेदना से भरी रचना i आपको बधाई  i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 12:01pm

आ० भाई  सुशील सरना जी , सुन्दर और सन्देश देती इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें l

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 29, 2015 at 9:47am

बहुत मर्मस्पर्शी. जागृत करती प्रभावी पंक्तियाँ , नमन आदरणीय सरना जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 29, 2015 at 12:45am

आदरणीय सुशील सरना सर जी , सुन्दर और सन्देश देती रचना पर आपको हार्दिक बधाई ! सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 28, 2015 at 10:02pm

आदरणीय सरना साहब, बहुत ही मार्मिक कथ्य साझा किया है आपने, क्या कही जाय, मुद्दा सोचनीय है और ईलाज के साथ साथ मर्ज बढ़ते जा रहा है. एक अच्छी और गंभीर रचना पर बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service