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किसी का कभी गम लिया होता..(ग़ज़ल 'राज')

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कभी जिन्दगी को जिया होता

ख़ुदा का अदा शुक्रिया होता

 

मुकम्मल नई इक ग़ज़ल होती

अगर अश्क़ हँस के पिया होता

 

फ़लक चूमता ये कदम तेरे

कोई काम ऐसा किया होता

 

बिखरती न गिरती दुआ रब की

अगर चाकदामन सिया  होता

 

कई रास्ते  खुल गए होते

किसी का कभी गम लिया होता

 

कहाँ काटता यूँ अकेलापन

किसी को सहारा दिया होता

 

है क्या जीस्त खानाबदोशों की

ठिकाना न जिनका ठिया होता 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2015 at 8:31pm

गुमनाम जी तहे दिल से शुक्रिया आपका .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 11:45am

आदरणीया राजेश दीदी, बहुत खूबसूरत अश'आर कहे हैं आपने. यह दो अशआर बहुत पसंदीदा हुए, दिली दाद कुबूल कीजियेगा

बिखरती न गिरती दुआ रब की

अगर चाकदामन सिया  होता....बहुत सुंदर

 

कई रास्ते  खुल गए होते

किसी का कभी गम लिया होता....अवसरवादीयों के लिए  :))

Comment by somesh kumar on February 6, 2015 at 10:01am

है क्या जीस्त खानाबदोशों की

ठिकाना न जिनका ठिया होता 

सुंदर गज़ल पर हार्दिक बधाई दीदी जी 

Comment by Shyam Narain Verma on February 6, 2015 at 9:53am

बेहतरीन ग़ज़ल की हार्दिक शुभकामनायें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 3:33am

आदरणीया राजेश कुमारी जी उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई. शेर दर शेर दाद कुबूल करे.

मतला कमाल का हुआ है जैसे ज़िन्दगी का निचोड़ ---

कभी जिन्दगी को जिया होता

ख़ुदा का अदा शुक्रिया होता

Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on February 6, 2015 at 1:03am

अच्छा है...

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 5, 2015 at 11:16pm
कभी जिन्दगी को जिया होता
ख़ुदा का अदा शुक्रिया होता
मुकम्मल नई इक ग़ज़ल होती
अगर अश्क़ हँस के पिया होता,
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल बानी है , आदरणीय राजेश कुमारी जी, बहुत बहुत बधाई, सादर।
Comment by gumnaam pithoragarhi on February 5, 2015 at 10:02pm

है क्या जीस्त खानाबदोशों की

ठिकाना न जिनका ठिया होता

वाह खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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