For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुझे वो याद करके दिल जलाती है चले आओ

तड़प कर गीत वो गम के सुनाती है चले आओ

बुलाती हैं तुझे हरदम तुम्‍हारे गॉंव की गलियॉं

तुम्‍हें वो याद करके अश्‍क बहाती है चले आओ

न भूलेगीं कभी गलियॉं शरारत याद है तेरी

कसम तुमको शरारत की दिलाती है चले आओ

जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्‍हारी मॉं

तुम्‍हारा नाम ले ले वो बुलाती है चले आओ

न सुख मिलता यहॉं शहरी न बिजली है न बत्‍ती है

मगर खुद चॉंदनी रस्‍ता दिखाती है चले आओ

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 642

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 5, 2015 at 10:28pm

अखंड जी

उस्तादों की इस्लाह के बाद  गजल और् निखरी है i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 10:24pm

आदरणीय अखंड गहमरी जी, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है 

जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्‍हारी मॉं

तुम्‍हारा नाम ले ले वो बुलाती है चले आओ....वाह , बहुत - बहुत बधाई आपको ! सादर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 4, 2015 at 6:10pm

जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्‍हारी मॉं

तुम्‍हारा नाम ले ले वो बुलाती है चले आओ

बहुत ही मनमोहक और सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई

Comment by Pari M Shlok on March 4, 2015 at 1:43pm
वाह जवाब नहीं .... कमाल की प्रस्तुति चले आओ
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2015 at 11:35am

क्या बात है...दिल बाग़ बाग़ हो गया !

न भूलेगीं कभी गलियॉं शरारत याद है तेरी

कसम तुमको शरारत की दिलाती है चले आओ

बहुत सुन्दर !!

जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्‍हारी मॉं

तुम्‍हारा नाम ले ले वो बुलाती है चले आओ

लाजवाब!!

न सुख मिलता यहॉं शहरी न बिजली है न बत्‍ती है

मगर खुद चॉंदनी रस्‍ता दिखाती है चले आओ

बहुत ख़ूब! चॉंदनी रस्‍ता दिखाती है चले आओ!! क्या तरन्नुम है!

बहुत बहुत बधाई!! सादर! आज का दिन खुशनुमा बना दिया आपने!

Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2015 at 9:51am
उम्दा गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबाद ....
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 4, 2015 at 4:11am
सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय अखंड गहमरी जी, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 9:24pm

वाह वाह वाह आदरणीय अखंड जी बहुत ही मनमोहक और सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई निवेदित है 

सभी अशआर मुग्ध कर रहे है, इन्हें गुनगुनाकर झूम गया हूँ 

जहाँ गुनगुनाने में ज़रा सी खलल का अहसास हो रहा है यानी जहाँ लयात्मकता बाधित लगी उसे इंगित कर रहा हूँ -

बुलाती हैं तुझे हरदम तुम्‍हारे गॉंव की गलियॉं

तुम्‍हें वो याद कर आँसू बहाती है चले आओ (करके अश्क के स्थान पर)

जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्‍हारी मॉं

तुम्‍हारा नाम ले लेकर  बुलाती है चले आओ (वो के स्थान पर )

न सुख मिलता यहॉं शहरी न बिजली है न बत्‍ती है......... ( बिजली और बत्ती एक ही बात  ध्वन्यार्थ हो रही है यदि एक नया शब्द आ जाए तो और भी  अच्छा लगेगा.)

मगर खुद चॉंदनी रस्‍ता दिखाती है चले आओ...... बहुत उम्दा अशआर 

झूम कर गुनगुनाने वाली सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति हेतु हार्दिक आभार 

Comment by umesh katara on March 3, 2015 at 9:23pm

बुलाती हैं तुझे हरदम तुम्‍हारे गॉंव की गलियॉं

तुम्‍हें वो याद करके अश्‍क बहाती है चले आओ
वाहहहहहहहहहह

Comment by somesh kumar on March 3, 2015 at 7:59pm

शहर में जा बसी नई पीढ़ी को पुनः अपने आंचल में समेटने को आतुर गाँव की पुकार को सुंदर अभिव्यक्ति दी है |सद्प्रयास पर बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
7 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service