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मैं हूँ बीमारे गम :हरि प्रकाश दुबे

मैं हूँ बीमारे गम लेकिन ऐसा नहीं,

जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े !

मेरा दिल कांच की चूड़ियां तो नहीं,

एक झटका लगे टूटकर गिर पड़े !

मैं हूँ बीमारे गम …………

 

मेरे महबूब ने मुस्कराते हुए ,

नकाब चेहरे से अपने सरका दिया !

चौदहवीं का चाँद रात शरमा गया,

चौदहवीं का चाँद

जितने तारे थे सब टूटकर गिर पड़े !

मैं हूँ बीमारे गम …………

 

जिक्र जब छिड़ गया उनकी अंगडाई का,

शाख से फूल यूँ ,टूट कर गिर पड़े ,

जैसे दुल्हन कोई प्यार की सेज पर,

जैसे दुल्हन कोई

जिंदगी के मजे लूट कर गिर पड़े !  

मैं हूँ बीमारे गम …………

 

हुस्नवालों की गलियों से मैयत मेरी,

रो के काँधे पे जिस दिन उठाई गयी,

कंघियाँ गेसूओं में फँसी रह गयीं,

आइनें हाथ से छूट कर गिर पड़े ! 

 

मैं हूँ बीमारे गम लेकिन ऐसा नहीं,

जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 1501

Comment

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Comment by Samar kabeer on March 26, 2015 at 10:32pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी,आदाब,इस सुन्दर रचना के लिये दाद क़ुबूल करें,मुबारकबाद |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 26, 2015 at 9:40pm

बहुत सुन्दर.... पुराने लफ़्ज़ों से सजी नए अंदाज की रचना ... बधाई आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 26, 2015 at 8:51pm

ववाह ---हरि प्रकाश जी

बहुत सुन्दर

हुस्नवालों की गलियों से मैयत मेरी,

रो के काँधे पे जिस दिन उठाई गयी,

कंघियाँ गेसूओं में फँसी रह गयीं,

आइनें हाथ से छूट कर गिर पड़े ! -----------------सादर.

Comment by Shyam Mathpal on March 26, 2015 at 7:52pm

 आ.हरि प्रकाश दुबे Ji,

 सौन्दर्य व दर्द लिए सुंदर रचना . हार्दिक बधाई .

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 26, 2015 at 1:00pm

मेरा दिल कांच की चूड़ियां तो नहीं, एक झटका लगे टूटकर गिर पड़े !

जनाब दिल तो बड़ा नाजुक होता है बिना गिरे ही टूट जाता है ...सुंदर ...बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2015 at 11:38am

बहुत खूब ! आदरणीय हरि भाई बढ़िया अभिव्यक्ति हुई है . आपको बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

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