For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत / नवगीत - क्या ये मेरा वही गाँव है --- गिरिराज भंडारी

क्या ये मेरा वही गाँव है

***********************

क्या ये मेरा वही गाँव है

सूरज अलसाया निकला है

मुर्गा बांग नहीं देता है 

नहीं यहाँ चिड़ियों की चीं चीं

ना कौवे की काँव काँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

दो पहरी सोई सोई है

दिवा स्वप्न में कुछ खोई है

यहाँ धूल में सनी उदासी

चौराहों के थके पाँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

गुम्बद भी है सूना सूना

मीनारों का है दुख दूना

चौपालों मे बढ़ी सियासत

अब बरगद में कहाँ छाँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

 

गोधूली में धूल नहीं है

कोई क्यारी फूल नहीं है

गाँव-गली में शहर चीखता

बीच भँवर में फँसा गाँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

 

नदी ताल  है सूने सूने

घट पनिहारिन के हैं ऊने

खुद के लाये तूफानों में

पास किनारे फँसी नाव है

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

फ्रिज टीवी मोबाइल आई

संस्कृति बाहर की समझाई

परंपरायें पूछ रहीं है

क्या ये अपना वही ठाँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

***********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

Views: 753

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 10:00pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गीत की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 12, 2015 at 9:06pm

बहुत सुंदर रचना ,सर. आज के गाँव में कई परिवर्तन आ चुके है. आधुनिकता ने पाँव जो पसार लिए है गाँव में भी. बधाई सर ,प्रस्तुति पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:28pm

आदरणीय नीरज नीर  भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:27pm

आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:26pm

आदरणीय श्री सुनील भाई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:25pm

आदरणीय समर कबीर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 8:24pm

आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई का हौत शुक्रिया ॥

Comment by Neeraj Neer on April 12, 2015 at 8:04pm

वाह बहुत सुंदर गीत.... गाँव के बदलते परिवेश को बाखूबी बयान करती हुई ॥ हार्दिक बधाई आदरणीय । 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 12, 2015 at 5:00pm
बदलते परिवेश का सुन्दर चित्रण, बधाई, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर।
Comment by shree suneel on April 12, 2015 at 3:43pm
पुराने प्रिय दृश्य जब लुप्त हो जाते हैं तो ऐसे ही भाव मन में उभरते हैं, आ0.
इस सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service