For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है -- गिरिराज भंडारी

221    212 1   1221     212 

 

बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है

सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है

 

कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही

चक्की में ज़िन्दगी  की पिसाई हुई तो है

 

बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली

लेकिन जो सच थी बात, उठाई  हुई तो है

 

देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक

तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है  

 

सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा

उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो है

 

माना कि, फौज आज खड़ी सरहदों पे , पर

दुश्मन के साथ थोड़ी ढिलाई हुई तो है

 

हिलता नहीं जो संगे ग़रीबी तो क्या ग़लत

सरकार खुद पसीना  नहाई हुई तो है

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 917

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 9:34am

आदरणीय राम अवध भाई , हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 9:33am

आ. उमेश भाई , बहुत शुक्रिया ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on April 10, 2015 at 10:02pm

अच्छी गजल बधाई काफिया निर्वाहन के लिये

Comment by umesh katara on April 10, 2015 at 8:42pm

वाह वाह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2015 at 11:23pm

आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृद से आभारी हूँ ॥

आँखे और आँ ख पर अगल अलग प्रतिक्रियाओं से संशय की स्थिति बन गई  थी ,  व्याकरण की गुथ्थी सुलझाने के लिये आपका बहुत शुक्रिया ,  जैसे आपने कहा है,  सुधार कर लूँगा ॥ आपका पुनः आभार ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 9, 2015 at 11:03pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाहब, क्या-क्या कमाल करते रहते हैं !
दिल से दाद कुबूल कीजिये.

अलबत्ता मतले के सानी में थोड़ा तब्दीली कर मिसरे यों बनाना चाह रहा हूँ -
सूरज से उसने आँख मिलायी हुई तो है
यानी,
बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है
सूरज से उसने आँख मिलायी हुई तो है

आदरणीय समर कबीर साहब का सुझाव सही है. आँखें की जगह आँख ही रखें. इसके दो फ़ायदे हैं.
एक, आँख शब्द पूरे आँख ’कौम’ (?) यानी (आँखों) की नुमाइन्दग़ी करता हुआ होगा. अतः यह एकवचन संज्ञा (आँख) ही बहुवचन का द्योतक होगी.
दो, भाषा के व्याकरण के अनुसार कर्ता (संज्ञा) के साथ कारक की विभक्ति ने आ जाय तो वाक्य की क्रिया कर्म के अनुसार होगी. जैसे राम ने रोटी खायी. यहाँ राम जबकि पुल्लिंग है किन्तु रोटी स्त्रीलिंग है और राम के साथ ने आने से क्रिया स्त्रीलिंग पर आधारित होगी.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 9, 2015 at 9:21pm

माफ़ कीजिये शिज्जू भैया मुझे भी  आ० समर जी की बात सही लग रही है यहाँ है आँखों के लिए ही प्रयोग हुआ है इसलिए यहाँ बहुवचन का ही प्रयोग होगा अर्थात हैं होना चाहिए .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 9, 2015 at 7:36pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत सुंदर मानीखेज ग़ज़ल है सादर बधाई आपको। 

माजरत के साथ, जनाब समर कबीर साहब मैं ये कहना चाहूँगा

सूरज से आँखें उसने मिलाई हुई तो है  यहाँ आँखें तो बहुवचन है लेकिन मिलाने वाला तो एक ही शख्स है तो आँखें होने के बावजूद यहाँ हैं नहीं बल्कि है होना चाहिये। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2015 at 7:18pm

आदरणीय समर भाई , आपभी बड़े कठोर निकले , फैसला मुझ नौसीखिये पर छोड़ दिया । अगर ऐसा है तो मै आपके मिसरे को चुन रहा हूँ  ।  और यही सुधार कर लूँगा ॥ आपका बहुत शुक्रिया ॥

Comment by Samar kabeer on April 9, 2015 at 6:48pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,आप ने नक़ूश लिखा था उस हिसाब से मैने नक़्श कर दिया,नक़्शा यानी मानचित्र और नक़्श यानी निशान,फ़ैसला तो हुज़ूर आप ही को करना है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service