“मिस मिस ! नीरज इस टॉकिंग इन हिंदी अगेन”.मनीष ने चुगली लगाते हुए टीचर से कहा .... चटाक !!!! और शिक्षाविभाग के मंत्री नीरज श्रीवास्तव जी का हाथ अचानक गाल पर पँहुचा फिर वर्तमान के धरातल पर लौट कर सामान्य होते हुए तेवरी स्वर में बोले
“कई बार चेतावनी देने के बाद आँकड़ों के अनुसार तुम्हारे विभाग में कुल २० प्रतिशत हिंदी में काम होता है मनीष जी,आय एम् टॉकिंग अगेन इन हिंदी... तुम्हारे निलंबन के आदेश दो दिन में पँहुच जायेंगे” मनीष का कद मानो यकायक छोटा हो गया.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आज नीरज ने मनीष को जिस तरह से निरुत्तर किया था वह उसके मनीष ही नहीं, पूरी शिक्षा पद्धति को औकात बताता हुआ था.
संभवतः अंतिम पंक्ति उपर्युक्त ढंग से होती तो शायद लघुकथा के भाव अधिक उभर कर आते. ऐसा मैं आपकी संशोधित लघुकथा तथा इस पर आयी शुभ्रांशु भाई की विन्दुवत टिप्पणी को पढ़ कर कह रहा हूँ, आदरणीया राजेश कुमारीजी. आपकी संवेदनशील दृष्टि ने आम जीवन में घटित बहुत ही महीन तथ्य को पकड़ा है.
हर्दिक बधाई.
आ० गिरिराज जी,आपको लघु कथा अच्छी लगी आपका हार्दिक आभार आप सही कह रहे हैं शुभ्रांशु भैया के इंगित करने के बाद एहसास हुआ कि जो लघु कथा के माध्यम से मैं कहना चाह रही थी वो पाठकों तक पूरा नहीं पँहुच रहा था सम्प्रेषण में कहीं कोई कमी थी उसे अब दूर किया है आशा करती हूँ की अब स्पष्ट होगी.
शुभ्रांशु भैया,दिल से आभार आपका आप लघु कथा के मर्म तक पँहुच कर वो सार निकाल कर लाए जो मैं जानने की इच्छुक थी शुरू में विधायक के बचपन के दोस्त का नाम लिखना इस लिए जरूरी नहीं समझा था सोचा था की डायलाग से पाठक पकड़ पायेंगे किन्तु मेरा सोचना गलत था आपकी बातों से उस त्रुटी का पता चल गया अतः कुछ संशोधन आवश्यक हो गया है लघु कथा को सही दिशा में (जो मेरा लक्ष्य था )मोड़ने का प्रयास करती हूँ विधायक को कार्यरत लिखने की त्रुटी का भी आपने सही सुझाया |दिल से आपकी समीक्षा का स्वागत करती हूँ |
महर्षि त्रिपाठी जी ,बहुत बहुत आभार |
आदरणीया राजेश जी , लघु कथा अच्छी हुई है , हार्दिक बधाई आपको । आदरणीय शुभ्रांशु जी की बात से मै भी सहमत हूँ , विधायक शिक्षा विभग के कर्मचारी नही होते , शिक्षा मंत्री जरूर हो सकते हैं ।
आदरणीया राजेश जी,
कथा में कहीं कुछ कमी सी लग रही थी. जब आपके विचार को पढा़ तो बात साफ़ हुई. उस कनिष्ठ अधिकारी मनीष का नाम पहले आरोप लगाने वाले के तौर पर नहीं आया है. जिससे ये भ्रम पैदा हो रह है.
’विधायक” शिक्षाविभाग में कार्यरत नहीं होता अमुमन वो मंत्री होता है.
कथा सुन्दर भाव के साथ आयी है.
सादर.
मौजूदा परिस्थित में अपनी मातृभाषा की स्थित पर अच्छा प्रकाश ,,आ. rajesh kumari जी |
आ० वीरेंदर वीर जी,आप जैसे कथाकार से सराहना सिक्त प्रतिक्रिया पाना लेखन को सार्थक करना है आपका दिल से बहुत बहुत आभार|
हिंदी के नाम पर सरकारी विभागों में जो दिखाई देता है उसीका एक लाजवाब उदारहण है आपकी ये लघु कथा !
सुन्दर प्रस्तुती के लिए सादर बधाई स्वीकार करे आदरणीया राजेश कुमारी जी.
दिल से बहुत- बहुत आभार विनय कुमार सिंह जी.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online