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इंसानी फ़ितरत – ( लघुकथा ) –

इंसानी फ़ितरत – ( लघुकथा )  –

"हे पवन देव ,कृपया मेरी  सहायता कीजिये"!आम के वॄक्ष ने कराहते हुए कहा

“क्या हुआ  बन्धु, कोई कष्ट है क्या"!

"क्या आप नहीं देख रहे, यह उदंड मानव झुंड, पत्थर मार मार कर मुझे घायल कर रहा हैं"!

"तो इसमें मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं"!

"आप अपने वेग से मुझे झकझोर कर मेरे फ़लों को नीचे गिरा दीजिये ताकि यह  संतुष्ट होकर,  पत्थर प्रहार बंद कर दें"!

"तुम बहुत भोले हो मित्र, ऐसा कुछ भी नहीं होगा,ये इंसान  हैं"!

"आपके इस कथन का आशय क्या है,स्पष्ट रूप से बताइये "!

"देखो मित्र,तुम्हारे पास अन्य जो भी प्राणी जैसे कीडे,मकोडे, पशु, पक्षी आदि आते हैं तो वे तुम्हारे  फ़ल, फ़ूल, पत्ते इत्यादि उतना ही लेते हैं जितनी उन्हें भूख या ज़रूरत  होती है"!

"हॉ, यह तो सत्य है"!

"मगर यह जो इंसान है,यह सदैव पेट से ज्यादा घर भरने की लालसा रखता है, भले ही वह वस्तु घर में पडे पडे नष्ट हो जाय"!

"पर ऐसा क्यों करता है इंसान"!

"यही इंसानी  फ़ितरत है"!

 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2015 at 12:12pm

हार्दिक आभार आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 26, 2015 at 10:17am
अच्छी लघुकथा के लिए दाद कुबूल करें आदरणीय तेज वीर जी
Comment by TEJ VEER SINGH on September 24, 2015 at 7:42pm

हार्दिक आभार आदरणीय कान्ता जी,कृष्ण मिश्रा जी!आपने मेरी लघुकथा को समय दिया ,सराहना की, अच्छी विवेचना की!पुनः बधाई!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 3:18pm
सार्थक लघुकथा.हार्दिक बधाई आ.तेजवीर जी।
Comment by kanta roy on September 24, 2015 at 1:04pm
वाह !!! इंसानी फितरत जैसे जन्मों का भूख ,जितना खाये उतना उसका भूख बढता जाये । बहुत सफल रचनाकर्म हुआ है आदरणीय तेजवीर जी । बधाई
Comment by TEJ VEER SINGH on September 24, 2015 at 12:57pm

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, श्री मिथिलेश वामनकर जी, आप लोगों ने मेरी लघुकथा को समय दिया, सराहना की, अपने महत्व पूर्ण विचार व्यक्त किये!पुनः आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2015 at 12:13pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. अपने शीर्षक को सार्थक करती इस सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2015 at 8:47pm

इंसानी फितरत कथा में उभर कर सामने आयी है , साधुवाद .

Comment by TEJ VEER SINGH on September 23, 2015 at 8:07pm

हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, लघुकथा को समय दिया,सराहा, सार्थक टिप्पणी की!पुनः आभार!

Comment by pratibha pande on September 23, 2015 at 5:50pm

संचय करने की प्रवृति ही इंसानी दुखों का कारण है ,गहरे मर्म वाली इस प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय तेज़ वीर सिंह जी 

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