क़ुरैशी साहब की रचनाएँ संभाग से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं थीं, लेकिन दूसरे साथी लेखकों की प्रकाशित रचनाओं, संग्रहों और उनको मिलने वाले छोटे-बड़े सम्मानों से वे बहुत विचलित रहा करते थे। प्रकाशन की भूख उन्हें बहुत सताया करती थी, पर क्या करें न तो आर्थिक स्थिति अच्छी थी और न ही कोई सहारा। बहुत से सम्पादकों से मधुर संबंध होने के बावजूद जब कभी उनकी रचनाएँ अस्वीकृत हो जातीं, तो उनकी नींद हराम हो जाती थी। इस बार तो एक पत्रिका के संपादक को लम्बी सी शिक़ायती ई-मेल भेज दी। कोई उत्तर न मिलने पर आज सीधे सम्पादक महोदय से फोन पर सम्पर्क कर ही लिया। उनका लम्बा भाषण सुनने के बाद सम्पादक महोदय ने उनसे कहा:
"क़ुरैशी साहब, आपके द्वारा भेजी गई रचनाओं का हम या हमारा प्रकाशन क्या करता है या क्या करना चाहिए, उस पर प्रश्न चिन्ह लगाने से पहले कई बार अपनी रचनाओं को पढ़ा करें, सोचा करें,भाई!"
"आप सोचते हैं कि हम ऐसा नहीं करते क्या? आप दूसरों को तवज्जो देकर छापते ही जा रहे हैं, मेरी रचनाएँ उनसे कमतर हैं क्या?" क़ुरैशी साहब ने कुछ ऊँची आवाज़ में कहा।
"मुझे आपसे क्या और क्यों कर खुन्नस होगी?"
" तो फिर आपने मुझे पत्रिका के विशेषांक से किक आउट क्यों किया?"
"आश्वस्त रहें ये कतई किक आउट नहीं है, केवल वेक अप काल हैI एक रिजेक्शन से ये हाल है तो खुद की रचना को रिजेक्ट करने का हुनर कब सीखोगे, क़ुरैशी साहब?" सम्पादक महोदय ने विनम्रता से समझाते हुए कहा।
अधिक छपने की भूख भूल गए क़ुरैशी साहब और अपनी अस्वीकृत भूखी रचनाओं को निहारने लगे।
[मौलिक व अप्रकाशित]
Comment
आपकी ये रचना, रचनाकर्म के सन्दर्भ में कई बिन्दुओं को उजागर कर रही है जो कुछ कटु होते हुए भी सत्य हैं , बधाई प्रेषित है आपको इस सार्थक रचना कर्म के लिए आदरणीय उस्मानी जी
यदि तमाम पाठकों के बीच किसी एक को इंगित कर कोई बात कहनी हो तो उन पाठक का नाम अवश्य अंकित कर दें आदरणीय. अन्यथा, आपकी विन्दुवत टिप्पणी या प्रतिक्रिया भी सामान्यीकरण (Generalization) की शिकार होकर प्रतिवाद का कारण बन जायेगी. यह संप्रेषणीयता के लिहाज से बहुत ही बड़ा दोष है. जो पात्र नहीं हैं वे भी लपेटे में आ जाते हैं. जैसा कि आप देख रहे हैं.
सादर शुभेच्छाएँ
अच्छी बात कही है आदरणीय शहजाद भाई |
// 'भूखी रचना' से मेरा आशय है ऐसी रचना जिसमें अभी कुछ कमियां/ख़ामियां रह गईं हैं और जो अपने रचाकार से बेहतर शिल्प,तथ्य या कथ्य की ख़ुराक चाह रही हैं लेकिन रचनाकार अनजान सा बनकर उन्हें ऐसी ही अवस्था में यहाँ-वहाँ प्रकाशित कराने के यत्नों में लगा हुआ है। //
आपको क्या लगता है कि बिना इस तथ्य का खुलासा हुए या कायदे से समझे हमने या अन्य पाठकों ने टिप्पणी की है, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ?
वस्तुतः लेखन जबतक सीख के लिए न हो बहुत अधिक विवेचना वैचारिकता को कमज़ोर कर देती है. इसे रचनाकर्म में अनावश्यक शाब्दिकता कहते हैं. यदि मात्र टिप्पणी के लिए या किसी की टिप्पणी पर अपनी बलात प्रतिक्रिया देनी हो तो बात अलग है. लेकिन सुधी लेखन इन तथ्यों को ताड़ जाता है. कैसे किसी बात को कहना है, किस बात को नहीं कहना है, जिसे कहना है उसे कितना कहना है जैसी समझ भले सापेक्ष हों, अर्थात व्यक्ति-व्यक्ति के अनुसार बदलते रहते हों, लेकिन इनकी अहमीयत अवश्य है. हर पाठक अपनी समझ के अनुसार ही रचना को समझता और स्वीकारता है. उसकी समझ की सीमा के बाहर की अत्युत्तम और संयमित रचना भी उसके लिए हाशिये पर की रचना की प्रतीत होती है. और वह उनमें अपनी उसी ’समझ’ से कमी ढूँढता फिरता है. मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि प्रश्न करना या कमियों के प्रति इंगित करना कोई दोष है. बल्कि ऐसा करने से ही समझ बढ़ती भी है. लेकिन प्रश्न करने के क्रम में व्यापी हुई उच्छृंखलता को अनुभवी चट से ताड़ लेते हैं इसमें भी शक नहीं है. यही कारण है कि जिन पंक्तियों को मैंने उद्धृत किया है वे अपनी रचना की अनावश्यक व्याख्या लगी है. किसी रचनाकार को इस प्रक्रिया से अवश्य बचना चाहिए. जबतक कि कुछ सुधीजन आग्रह न कर बैठें. या पाठकों की दशा और व्यवहार से इसकी नितांत आवश्यकता ही जान पड़े. मैं आपकी इस प्रस्तुति के सापेक्ष ऐसा कोई आग्रह, ऐसी कोई दशा या ऐसा कोई व्यवहार नहीं देख रहा हूँ.
विश्वास है, आपको मेरा कहा स्पष्ट हुआ या हो रहा होगा.
शुभेच्छाएँ.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online