For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीत की हार, हार की जीत (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

पिछले कुछ महीनों से अपने नौजवान बेटे के विचार सुन कर और गतिविधियाँ देखकर वे बहुत परेशान चल रहे थे। आज पुस्तकालय में अपने भरोसेमंद मित्र से मुलाक़ात होने पर उन्होंने कहा, "मासाब, अगर थोड़ा समय दे सको, तो मैं अपनी समस्या आपके सामने रखूं?"

"जी बिलकुल, कहिये!"

"मासाब, मेरा बेटा कह रहा है कि उसे तो सिर्फ़ सभी धर्मों के ग्रंथों को पढ़ने व समझने में रुचि है, वह भी तुलनात्मक अध्ययन करके लोगों को अच्छी सच्ची बातें व्याख्यान देकर समझायेगा!"

"ये तो बहुत ही अच्छी बात है, इसमें परेशान होने की क्या बात है? दुनिया में आख़िर कितने लोग कर पाते हैं ऐसा?"

"वो तो ठीक है, लेकिन वह ज़िद पर अड़ा है कि न तो आगे पढ़ाई करेगा और न ही कोई नौकरी!"

"अरे! ऐसी भी क्या ज़िद? फिर पैसे कैसे कमायेगा, जीवन कैसे बितायेगा?" मित्र ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा।

"कह रहा है ज़ल्दी ही छा जाऊंगा, सेमिनार करूँगा, कुछ नया मिलेगा जनता को, तो चंदा भी मिलेगा! फिर एन.जी.ओ. और करोड़पति होने तक की बातें फेंक रहा है, मासाब कुछ करो, मैं तो बहुत परेशान हूँ!" माथे पर हाथ रखते हुए उन्होंने बड़ी उम्मीद से मित्र की ओर देखा।

"देखो दोस्त, इस सदी में सभी धर्मों की अच्छी साझा बातें सामने लाकर व अंतर समझ कर समझाने का काम है तो बढ़िया! लेकिन इसमें जीत कर भी हार ही होती है!"

"क्या मतलब?" वे कुछ उत्तेजित से होकर बोले।

"जब तक सभी लोग ख़ुद अपने-अपने धार्मिक ग्रंथों को व दूसरे धर्मों के ग्रंथों को पढ़ेंगे, समझेंगे नहीं, व्याख्यानों के सही भावार्थ भी नहीं समझ सकेंगे और अर्थ का अनर्थ ही होगा!"

"तो मासाब बेटे से क्या कहूँ?"

"उससे कहना कि माहौल देख रहे हो न! जब ऐसे सफल लोग जीत कर छा जाते हैं, तो शब्दों व वाक्यों पर टांग खिंचाई शुरू हो जाती है! महिला-शोषण, बाल-शोषण या आतंकवादी गतिविधियों और धन-उगाही जैसे मामलों में लपेट कर चारों खाने चित कर दिया जाता है! न लोग सुधरेंगे, न जग सुधरेगा!" मित्र ने हाथ झटकते हुए कहा, "अहं, वहम और राजनीति के कारण,जीत की हार और हार की जीत से धर्म का मर्म कोई नहीं समझेगा!"

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 1173

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 11, 2016 at 10:55pm

अच्छी  लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 11, 2016 at 9:50pm

बहुत खूब आदरणीय शेख शहजाद जी.

Comment by Nita Kasar on July 11, 2016 at 9:09pm
कथा के ज़रिये आपने सार्थक संदेश दिया है,अब जनता नब्ज़ पहचानने लगी है जिस दिन धर्म का मर्म लोग समझने लगेंगे इन कोरे प्रचारकों की ज़रूरत ही ना होगी बधाई आपको आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2016 at 3:09pm
आदरणीय शेख शहज़ाद सर बहुत उम्दा बात, और बहुत सामयिक मुद्दा। बधाइयाँ
Comment by TEJ VEER SINGH on July 11, 2016 at 1:34pm

बधाई शेख उस्मानी जी!विषय तो आपने बिलकुल नया चुना है, आजकल इसपर खूब माथापच्ची हो रही है!आपका प्रयास निःसंदेह सराहनीय है!मगर इसे कौन कितना समझ पाता है ,यह देखनेवाली बात है!मुझे आपकी लघुकथा अच्छी लगी!

Comment by Samar kabeer on July 11, 2016 at 11:55am
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,बहुत बढ़िया विषय चुना आपने लघुकथा के लिये, सब लोग अगर अपने धर्म का पालन करने लगें तो कोई समस्या ही नहीं,लेकिन अपने धर्म ग्रन्थ ही लोग नहीं पढ़ते तो दूसरे धर्म को क्या पढ़ेंगे और क्या समझेंगे ।
इस शानदार लघुजथ के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:41am
वाह.. लाख टके की बात कह डाली आपने तो!बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय उस्मानी जी।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
19 minutes ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
21 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service