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(16 मात्राएँ)
कर्म करें तो बढ़ते सारे
बिना किये किस्मत भी हारे

रात चाँदनी और ये तारे
नहीं सुहाते बिना तुम्हारे

मजहब क्या दीवार है कोई
लिख डाले जो इतने नारे

रात अँधेरी से क्या डरना
हैं उम्मीदों के उजियारे

बीच भँवर में जीवन नैया
डोल रही,हैं दूर किनारे

खींचेगी फूलों की खुशबू
चलो देख कर काँटे प्यारे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 10:03am

आ. सतविन्द्र जी,

अच्छी रचना है... बधाई 
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 8:08pm

आदरणीय सतविन्द्र भाई , सुन्दर गीतिका के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Samar kabeer on May 8, 2017 at 3:32pm
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी रचना है,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Ravi Shukla on May 8, 2017 at 1:51pm

आदरणीय सतविन्‍द्र जी बहुत बहुत बधाई इस गीतिका के लिये छोटी बहर में अच्‍छा प्रयास है

Comment by narendrasinh chauhan on May 8, 2017 at 12:15pm

सुन्दर रचना 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 6:42pm
आदरणीय बृजेश भाई जी हार्दिक आभार हौंसलाफ़ज़ाई के लिए।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 7, 2017 at 3:40pm
वाह बहुत ही खूबसूरत सरस रचना..सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 2:56pm
आदरणीय कल्पना दीदी ,प्रयास को सराहने और प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 2:54pm
आदरणीय नीर जी प्रयास को वक्त देकर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 2:53pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी,हौंसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया!

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