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फितरत नहीं छिपती है - (गजल)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१ १२२२ २२१ १२२२


नफरत के बबूलों को आँगन में उगाओ मत
पाँवों में स्वयं के अब यूँ शूल चुभाओ मत।१।


ऐसा न हो यारों फिर बन जायें विभीषण वो
यूँ दम्भ में इतना भी अपनों काे सताओ मत।२।


फितरत नहीं छिपती है कैसे भी मुखौटे हों
समझो तो मुखौटे अब चेहरों पे लगाओ मत।३।


माना कि तमस देता तकलीफ बहुत लेकिन
घर को ही जला डाले वो दीप जलाओ मत।४।


ढकने को कमी अपनी आजाद बयानों पर
फतवों के मेरे  हाकिम  पैबंद  लगाओ मत।५।


ये वक्त तमाचा  झट जड़  देगा तुम्हारे भी
हालत पे किसी की तुम गाल बजाओ मत।६।


टूटेगा तो  पाँवों में  गिरकर  ये  चुभन देगा
शीशे को तड़ी में यूँ पत्थर तो दिखाओ मत।७।


मालूम नहीं शायद तन भी है  महज मिट्टी
कहते हैं घरौंदा वो मिट्टी का सजाओ मत।८)।


मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 1, 2018 at 9:35pm

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें । जनाब समर साहिब की बातों का संज्ञान लें।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 1, 2018 at 6:15pm

आदर्णीय लक्ष्मण धामी जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकारें।

Comment by Mohammed Arif on February 1, 2018 at 5:36pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

                          बढ़िया ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की हस्लाह पर तत्काल प्रभाव से अमल करें तो ग़ज़ल में और निखार आ जाएगा ।

Comment by Samar kabeer on February 1, 2018 at 3:30pm

जनाब लक्ष्मण धामी " मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

तीसरे शैर के सानी मुसरे में 'चहरे' की जगह "चहरों' करना उचित होगा ।

छटे शैर का सानी मिसरा लय में नहीं है, टंकण त्रुटि है शायद ?

7वें शैर के ऊला में 'भी' शब्द की जगह "ये" करना उचित होगा ।

आठवें शैर के ऊला मिसरे में 'तो' शब्द की जगह "हो" शब्द उचित होगा ।

Comment by Samar kabeer on February 1, 2018 at 3:14pm

अब तबीअत कुछ ठीक है,मेरे बेटे को ओबीओ पर चेट करना नहीं आता ।

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