For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की- दूर से इक शख्स जलती बस्तियाँ गिनता रहा

२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२ 
.
दूर से इक शख्स जलती बस्तियाँ गिनता रहा
रह गई थीं कुछ जो बाकी तीलियाँ गिनता रहा.
.
यादों के बिल से निकलती चींटियाँ गिनता रहा
था कोई दीवाना टूटी चूड़ियाँ गिनता रहा.
.
मुझ से मिलता-जुलता लड़का आईने से झाँक-कर
मेरे चेहरे पर उभरती झुर्रियाँ गिनता रहा.

.
होश मेरे गुम थे मैंने जब किया इज़हार-ए-इश्क़   
और वो नादान कच्ची इमलियाँ गिनता रहा.     
.
एक दिन पूछा किसी ने कौन है तेरा यहाँ  
दिल हुआ रुसवा बहुत बस उँगलियाँ गिनता रहा.
.  
नाम रब का ले रहे थे डूबती किश्ती में सब
एक मैं था जो तुम्हारी चिट्ठियाँ गिनता रहा.
.
याद कोई कर रहा था कितनी शिद्दत से मुझे,    
मैं भी गुमसुम बैठ कर बस हिचकियाँ गिनता रहा.

.
ट्रेन की खिड़की पे यूँ ही सर टिकाए था कोई
या कि उल्टे पाँव जाती बत्तियाँ गिनता रहा.
.
डूबता कैसे मैं उस की किश्तियाँ तैनात थीं 
वो जो दरिया में बहाई नेकियाँ गिनता रहा.
.
“नूर”-ए-नादाँ ये सफ़र तेरे ही अन्दर था मगर
तू ज़मीनो-आसमाँ की दूरियाँ गिनता रहा.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1094

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 10:03pm

वाह वाह आ. समर सर.. क्या कहने 
ग़ज़ल पूरी कीजिये ....
वैसे मैं भी एक शेर में बाग़ में इंतज़ार में तितलियाँ गिनने वाला था ...लेकिन फिर गिनती भूल गया 
सादर 

Comment by Samar kabeer on March 26, 2018 at 9:55pm

जनाब निलेश जी,आपकी ग़ज़ल इतना मुतास्सिर किया कि दो शैर मेरे भी हो गए,मुलाहिज़ा कीजिये:-

'और क्या करता बताओ इन्तिज़ार-ए-यार में

तैरती तालाब में मुर्ग़ाबियाँ गिनता रहा

बज़्म में तेरी नहीं था बोलने का इख़्तियार

बे अदब लोगों की मैं गुस्ताख़ियां गिनता रहा'

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 9:06pm

आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब,
.
आपकी टिप्पणी से अभिभूत हूँ ..स्नेह बनाए रखिये ,,
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 9:05pm

आ. अजय जी.
छात्र तो यहाँ   सभी हैं  और सभी   सुझावों का स्वागत भी है   लेकिन आप स्वयं कितने   आश्वस्त हैं अपने सुझाव को लेकर??
ख़याल आना और उस ख़याल को प्रोसेस कर के पेश करना भिन्न बातें   हैं..
सईद राही साहब   का एक   शेर आप की नज़र ..

.
हमें सब्र करने को कह तो रहे हो 
मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो ... ताक़बुले-रदीफ़ नज़रंदाज़ कर के मर्म तक पहुँचने का प्रयास कीजिये..
सादर 

Comment by Mohammed Arif on March 26, 2018 at 8:53pm

एक के बाद एक धमाकेदार ग़ज़लों का मुसलसल सिलसिला । माशा अल्लाह क्या ख़ूब ग़ज़लें पढ़ने-सुनने और गुनगुनाने में आ रही है । अल्लाह ओबीओ को लंबी उम्र अता करें । मुझ जैसे ग़ज़ल सीखने के पिपासु के इल्म-ए-ग़ज़ल में मुसलसल इजाफा  हो रहा है । ख़ुदा करे आप गुणीजन इसी तरह ग़ज़ल के विधानों पर चर्चा करते रहें और मुझ नाचीज़ को सीखने को मिलता रहे । इस शानदार ग़ज़ल पर दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय नीलेश जी ।

Comment by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 8:20pm

आदरणीय निलेश जी,

मै खुद को ग़ज़ल का एक छात्र ही समझाता हूँ. और  मेरी टिप्पणियों को उसी नज़रिए से लेने की ज़रुरत है. मैंने स्पष्ट लिखा है कि ''ये मेरा ख़याल है'' इसे किसी फैसले की तरह न ले. ये हमेशा संभव है कि मेरा ख़याल गलत हो.

सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 8:03pm

आ. अजय जी,
आप शायद अपनी ही टिप्पणी को दुबारा पढना चाहेंगे...
शेर के भाव ही शेर का मूड होते हैं... मूड यानी मिजाज़.. यहाँ मीर और ग़ालिब दो अलग शाइर हैं तो अलग मूड होंगे ही... लेकिन मैं  "नूर" हूँ और उसी में प्रसन्न हूँ ...
रही बात बिम्ब की तो ..मैं ``कॉपी पेस्ट शाइर या रोबोट   नहीं हूँ... जब जैसा ऊपर से उतरता है ..वैसा कह देता हूँ ..
ग़ज़ल भी सोच कर कही तो क्या कही ... दिल का मुआमला है हुजूर ज़हन का नहीं...
वैसे टिप्पणी को गंभीरता से न लेने की नसीहत इसी ग़ज़ल तक सीमित है या आगे भी इसका पालन करता रहूँ?
सादर 

Comment by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 7:58pm

आदरणीय निलेश जी,

मुझे लग रहा है आप मिजाज़ और विषय को एक मान रहे हैं . मिजाज़ और विषय एक ही बात नहीं है. एक विषय पर लिखे ग़ालिब के शेर का मिजाज़ मीर के शेर के मिजाज़ से अक्सर अलग होता है. मिजाज़ को व्याख्यायित करना काफी मुश्किल काम है यह एक अनुभवजन्य चीज है.

'यादों का चीटियों के बिलसे निकलना'  सामान्य परंपरा से बिल्कु्ल अलग बिम्ब है यह एक ऐसी ग़ज़ल में होता जिसमे और इसी तरह के बिम्ब होते तो ज्यादा उपयुक्त होता मेरा मंतव्य सिर्फ ये था.

वह एक त्वरित टिप्पणी थी उसे इससे ज्यादा गंभीरता से न लें.

सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 7:23pm

आ. अजय जी,
वैसे तो मैं सहमत नहीं हूँ आप की बात से फिर भी यदि मैं किसी एक  शेर को आउट ऑफ़ मूड कहूँ तो वो शायद मतला होगा क्यूँ कि बाकी   अशआर कमोबेश इश्क़ अथवा मूल पात्र के गिर्द घूम रहे   हैं ...
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 7:21pm

धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी 
आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service