अरकान: नामालूम
लय: दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त ... या ...आप को भूल जाएं हम इतने तो बेवाफ़ा नहीं ...की तरह
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जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे
दिल से तेरे निकल के हम जानें कहाँ कहाँ रहे.
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रब से दुआ है ये मेरी दिल की सदा है आख़िरी
लब पे उसी का नाम हो जिस्म में गर ये जाँ रहे.
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लगते हों आलिशान हम कहने को क़ामयाब हों
खो के तुझे तेरी कसम अस्ल में रायगाँ रहे.
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तेरी तलब में जाने जाँ ख़ाक हुए वगर्ना हम
तुझ से मिले थे उस से क़ब्ल कितनों के आसमाँ रहे.
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तन्हा तुम्हारे दर्द को रहने नहीं दिया कभी
दर्द जहाँ जहाँ रहा हम भी वहाँ वहाँ रहे.
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दैर-ओ-हरम के दौर में कौन दिलों को पूजता
घर थे सभी अँधेरे में रौशनी में मकाँ रहे.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. भाई सुरेन्द्रनाथ सिंह जी
शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी
आद0 भाई नीलेश जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन ग़ज़ल आपके हवाले से पढ़ने को मिली।कसम से मजा आ गया। बहुत खूब। बधाई देता हूँ आपको।
आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
धन्यवाद आ. मोहम्मद आरिफ साहब
आदरणीय नीलेश जी आदाब,
क्या ख़ूब ग़ज़ल हुई है । बहुत ही शानदार ग़ज़ल । पढ़कर मज़ा भी आया और बहुत कुछ सीखने को मिला । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
धन्यवाद आ. समर सर,
आशीर्वाद बनाए रखिये
सादर
धन्यवाद आ. बृजेश जी
आप जो दिल में ठान लेते हैं,कर गुज़रते हैं,आपकी ज़हानत पर मुझे न्याज़ है, सलामत रहिये ।
वाह बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय ..
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