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छोड़ दो काफ़ी सियासत हो गयी है

2122 2122 2122

.

जानते हैं तुम में ताकत हो गयी है,
और किस-किस पे ये आफत हो गयी है।

झूठ है जो, झूठ बिन कुछ भी नहीं, पर
अब जमाने में सदाक़त हो गयी है।

जब चमन का फूल होने का भरो दम,
क्यों चमन से ही अदावत हो गयी है?

जिस्म पर ठंडा लबादा, आग मुँह में,
जिसने रक्खे उसकी शुहरत हो गयी है।

कौम के अच्छे की खातिर काम हो अब,
छोड़ दो काफ़ी सियासत हो गयी है।

हर खुशी पर, मेरी बोलो तो भला क्यों,
तुमको बस रोने की  आदत हो गयी है?

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2020 at 7:44am

आद0 सतविंदर भाई जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल,, मतला बेहतरीन लगा। बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2020 at 6:28am

आ. भाई सतविन्द्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by आशीष यादव on January 2, 2020 at 2:52pm

 आदरणीय श्री सतविन्दर सर अच्छी गजल की रचना पर बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 2, 2020 at 12:50pm

सतविंदर जी अच्छी गज़ल हुई, बधाई

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