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यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी 

उदासी जहन  में जमी तो रहेगी 

 

हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर 

वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी 

 

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा 

मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी 

 

करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में 

हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी 

 

 

भले मौन हो जाए  तेरा नसीबा 

कहीं ना कहीं सरग़मी  तो रहेगी 

 

वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ 

रगो  में झलक पश्चिमी तो रहेगी 

 

लिखे ना लिखे "राज" तुझ पे ग़ज़ल वो 

फ़कत दीद की  मरहमी तो रहेगी 

 

 

****************************

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 7:32pm

प्रिय अरुण आपको ग़ज़ल और उसके भाव रुचिकर लगे दिल से शुक्रिया 

Comment by Aarti Sharma on February 3, 2013 at 7:28pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल मैम..बधाई स्वीकारें...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 3, 2013 at 7:08pm

सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीय राजेश जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 3, 2013 at 5:46pm

वाह आदरणीया वाह सुन्दर भावों से सुसज्जित शानदार ग़ज़ल, सभी के सभी अशआर दिल को छू गए, ढेरों दाद कुबूल करें. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 11:23am

अरुण निगम जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 3, 2013 at 11:20am

वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ 

रगो  में झलक पश्चिमी तो रहेगी ..................वाह !!!!!!!!!

सही बात कहके मरम छू लिया है

दिखावे की चाहत डमी तो रहेगी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 11:17am

प्रिय संदीप  आपको ग़ज़ल पसंद आई आपके तीन वाह के जबाब में शुक्रिया ,शुक्रिया शुक्रिया कहती हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 11:02am

आदरणीय विजय निकोर जी आपको ग़ज़ल उसके भाव पसंद आये तहे दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 11:00am

आदरणीय सौरभ जी यही तो होती है एक ग़ज़ल पाठक की खूबी जो हर शेर में भाव में प्रवेश कर जाए आप शेर के मर्म तक पहुचे ,दिल की गहराई से  आभारी हूँ ,ये शेर लिखते हुए मैं सोच रही थी की कहीं कोई यह सोच न ले लेकिन इसको लिखते वक़्त मेरे जो भाव हैं वो मैं एक बार स्पष्ट करना चाहती हूँ उसके बाद भी ठीक ना लगे तो आपके परामर्श का अनुसरण करुँगी ,मैंने लिखा --

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा 
मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी.. -------पहले तो ये मुहब्बत की कश्ती है ,साहिल नहीं मिलेगा तो  बहेगी या भटकेगी करना ठीक नहीं जो चित्र उस वक़्त मेरी आँखों में था वो उस कश्ती के सामान था जो जब तक मल्लाह नहीं आता वो किनारे पर बंधी हुई एक जगह थमी रहती है ,दुसरे नैतिकता मेरे दिमाग में थी की यदि साहिल (उचित )साहिल ना मिला तो कश्ती खुद थमी हुई इन्तजार करेगी  आगे नहीं बढ़ेगी ,उम्मीद करती हूँ की मेरे कहने का तात्पर्य आप समझेंगे 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 3, 2013 at 10:52am

वाह वाह वाह

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीया राजेश कुमारी जी

तहे दिल से ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये

कृपया ध्यान दे...

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