यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी
उदासी जहन में जमी तो रहेगी
हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर
वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी
नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा
मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी
करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में
हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी
भले मौन हो जाए तेरा नसीबा
कहीं ना कहीं सरग़मी तो रहेगी
वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ
रगो में झलक पश्चिमी तो रहेगी
लिखे ना लिखे "राज" तुझ पे ग़ज़ल वो
फ़कत दीद की मरहमी तो रहेगी
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Comment
प्रिय अरुण आपको ग़ज़ल और उसके भाव रुचिकर लगे दिल से शुक्रिया
बहुत सुन्दर ग़ज़ल मैम..बधाई स्वीकारें...
सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीय राजेश जी
वाह आदरणीया वाह सुन्दर भावों से सुसज्जित शानदार ग़ज़ल, सभी के सभी अशआर दिल को छू गए, ढेरों दाद कुबूल करें. सादर
अरुण निगम जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया
वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ
रगो में झलक पश्चिमी तो रहेगी ..................वाह !!!!!!!!!
सही बात कहके मरम छू लिया है
दिखावे की चाहत डमी तो रहेगी |
प्रिय संदीप आपको ग़ज़ल पसंद आई आपके तीन वाह के जबाब में शुक्रिया ,शुक्रिया शुक्रिया कहती हूँ
आदरणीय विजय निकोर जी आपको ग़ज़ल उसके भाव पसंद आये तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय सौरभ जी यही तो होती है एक ग़ज़ल पाठक की खूबी जो हर शेर में भाव में प्रवेश कर जाए आप शेर के मर्म तक पहुचे ,दिल की गहराई से आभारी हूँ ,ये शेर लिखते हुए मैं सोच रही थी की कहीं कोई यह सोच न ले लेकिन इसको लिखते वक़्त मेरे जो भाव हैं वो मैं एक बार स्पष्ट करना चाहती हूँ उसके बाद भी ठीक ना लगे तो आपके परामर्श का अनुसरण करुँगी ,मैंने लिखा --
नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा
मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी.. -------पहले तो ये मुहब्बत की कश्ती है ,साहिल नहीं मिलेगा तो बहेगी या भटकेगी करना ठीक नहीं जो चित्र उस वक़्त मेरी आँखों में था वो उस कश्ती के सामान था जो जब तक मल्लाह नहीं आता वो किनारे पर बंधी हुई एक जगह थमी रहती है ,दुसरे नैतिकता मेरे दिमाग में थी की यदि साहिल (उचित )साहिल ना मिला तो कश्ती खुद थमी हुई इन्तजार करेगी आगे नहीं बढ़ेगी ,उम्मीद करती हूँ की मेरे कहने का तात्पर्य आप समझेंगे
वाह वाह वाह
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीया राजेश कुमारी जी
तहे दिल से ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये
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