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समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ  ( 18)

समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ 
हसीन हादसे का मैं शिकार कैसे हुआ 
***
कहा है तूने कि ये हादसा नहीं है गुनाह 
हुआ गुनाह तो फिर बार बार कैसे हुआ 
***
हुई है कोई ग़लतफ़हमी आपको मुंसिफ़ 
करे जो प्यार कोई गुनहगार कैसे हुआ 
***
करेगा कौन यक़ीं गर मुकर भी जाओ तो 
चला न तीर तो फिर आर पार कैसे हुआ 
***
मुझे तो आती है साज़िश की कोई बू, मुझ पर 
ग़मों का वार ये तरतीब-वार कैसे हुआ 
***
गया है पकड़ा तेरा झूठ या कि फ़िक़्र कोई 
बता कि ज़र्द तेरा रुख़ ऐ यार कैसे हुआ 
***
हयात में कभी यलग़ार-ए-ग़म* के मौके पर 
लगाम छोड़ दे वो शहसवार कैसे हुआ 
***
यक़ीन जिस पे ज़रा सा नहीं था, आज सनम 
वही रक़ीब तेरा राज़दार कैसे हुआ 
***

ख़ुशी बहुत है,मगर इश्क़ के शहीदों में

बता 'तुरंत कि मेरा  शुमार कैसे हुआ


***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी 

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on January 26, 2019 at 10:23pm

आदरणीय गिरधारी सिंह जी अच्छी गजल आपने कहीं मुबारकबाद पेश करता हूं गजल से पहले इसका अरकान लिख देते तो थोड़ी सुविधा हो जाती 

Comment by arun on January 26, 2019 at 6:14pm
बहुत खूब आदरणीय। उम्दा ग़ज़ल कही आपने। बधाई

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