समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ
हसीन हादसे का मैं शिकार कैसे हुआ
***
कहा है तूने कि ये हादसा नहीं है गुनाह
हुआ गुनाह तो फिर बार बार कैसे हुआ
***
हुई है कोई ग़लतफ़हमी आपको मुंसिफ़
करे जो प्यार कोई गुनहगार कैसे हुआ
***
करेगा कौन यक़ीं गर मुकर भी जाओ तो
चला न तीर तो फिर आर पार कैसे हुआ
***
मुझे तो आती है साज़िश की कोई बू, मुझ पर
ग़मों का वार ये तरतीब-वार कैसे हुआ
***
गया है पकड़ा तेरा झूठ या कि फ़िक़्र कोई
बता कि ज़र्द तेरा रुख़ ऐ यार कैसे हुआ
***
हयात में कभी यलग़ार-ए-ग़म* के मौके पर
लगाम छोड़ दे वो शहसवार कैसे हुआ
***
यक़ीन जिस पे ज़रा सा नहीं था, आज सनम
वही रक़ीब तेरा राज़दार कैसे हुआ
***
ख़ुशी बहुत है,मगर इश्क़ के शहीदों में
बता 'तुरंत कि मेरा शुमार कैसे हुआ
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय गिरधारी सिंह जी अच्छी गजल आपने कहीं मुबारकबाद पेश करता हूं गजल से पहले इसका अरकान लिख देते तो थोड़ी सुविधा हो जाती
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