किसी रिश्ते में हों गर तल्ख़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
शजर पर गर हैं सूखी पत्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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बसाने को बसा लो ज़ुर्म की अपनी हसीं दुनिया
मगर बदनाम जो हों बस्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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नुमाइश कर रहे हो जिस्म की अच्छी नज़र चाहो
हुज़ूर ऐसी कभी ख़ुशफ़हमियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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मुसीबत, मुश्किलें, आफ़ात, चिंता और ग़म भी संग
घरोंदे में घुसी ये मकड़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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नहीं फ़र्ज़न्द को हासिल अगर कुछ काम थोड़े दिन
मिलें उसको हमेशा झिड़कियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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जलाना दिल किसी का भी कभी अच्छा नहीं होता
नमी आखों में या नम लकड़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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यही अच्छा करें बातें किसी औरत से बा-इज़्ज़त
कसोगे बे-वज़ह गर फब्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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रवैया सख़्त होगा कारगर कहना बड़ा मुश्किल
हदों से बढ़ गई गर सख़्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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दरो दीवार इज़्ज़त के सलामत रख 'तुरंत'अपने
खुली हों बिन ज़रूरत खिड़कियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी |
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब | हालाँकि आम बोल चाल के शब्द न चाहते हुए भी शायरी में घुस ही जाते हैं | उर्दू भाषा के बारे में कहा जाता है ये फौजियों की बोल चाल के कारण ही जन्मी है | लेकिन मेरे लिए आपकी बात बहुत महत्व रखती है | इसलिए इस लाइन को इस तरह परिवर्तित कर रहा हूँ -नहीं फ़र्ज़न्द को हासिल अगर कुछ काम थोड़े दिन |
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अच्छीं अगर बहुवचन में मान्य नहीं है जैसा कि मुझे भी लग रहा था | क्या रदीफ़ =हरगिज़ नहीं बेहतर सही रहेगा ?
"रोज़गार" शब्द का मुख़फ़्फ़फ़ु 'रूज़गार' लेना मेरे नज़दीक उचित नहीं,अगर आम बोलचाल के शब्द भी शाइरी में आने लगे तो,इसकी सूरत क्या से क्या हो जाएगी ,ये मेरा निजी मत है ।
'अच्छी' को "अच्छीं" नहीं किया जा सकता,
और 'अच्छी' एक वचन है,और इसके आगे पीछे ऐसा कोई शब्द नहीं जो इसे बहुवचन बना सके,इसलिए रदीफ़ कुछ और सोचियेगा ।
आदरणीय Ravi Shukla जी , खाकसार का कलाम पसन्द करने और हौसला आफजाई का बेहद शुक्रिया | मुझे लगता है यदि ग़ज़ल कही जाती है तो कुछ शब्दों को बोलचाल के आधार पर प्रयोग किया जा सकता है बशर्ते उनका कोई और अर्थ न निकले | मात्रा के लिए कुछ लफ्जों के दोनों रूप ही प्रचलित है | रास्ता /रस्ता ,राह गुज़र /रहगुज़र ,राहबर /रहबर ,आदि |
आदरणीय गिरधारी सिंह जी बहुत अच्छी गजल आपने कही शेर दर शेर मुबारकबाद पेश करता हूं आपने रोजगार को रुजगार की तरह इस्तेमाल किया है इस पर विद्वत जन की राय जानना चाहूंगा
आदरणीय Hariom Shrivastava जी | आप की स्नेहिल सराहना के लिए ह्रदय तल से आभार | मुझे कुछ शब्दों में कन्फ्यूज़न रहता है कि ये शब्द हैं भी या नहीं | जैसे अच्छीं ,होतीं ,करतीं आदि | खैर आपने कन्फर्म कर दिया इसलिए रदीफ़ में संशोधन कर दिया है | यहाँ पर आपको देखकर ख़ुशी हुई | सादर नमन |
आदरणीय Samar kabeer जी पहले यही रदीफ़ लिया था जो आपने बताया है- "अच्छी नहीं हरगिज़" लेकिन गेयता के हिसाब से अंत में हरगिज़ ठीक नहीं लग रहा था | इसलिए अंत में अच्छी किया | अच्छी बीच में लेने से क्या बहुवचन का प्रभाव ख़त्म हो जाएगा ? इससे तो अच्छा है अगर अच्छीं शब्द है तो फिर यही कर देता हैं |
वाह,वाहहह,बहुत सुंदर ग़ज़ल। आपका हार्दिक स्वागत आदरणीय गहलोत जी। 'अच्छी' की जगह 'अच्छीं' होना चाहिए। 'अच्छीं' बहुवचन है।
इसका उपाय है कि रदीफ़ इस तरह कर लें 'अच्छी नहीं हरगिज़'
आदरणीय Samar kabeer जी , आदाब | आपकी हौसला आफजाई के लिए शुक्रगुज़ार हूँ | दरअसल में असमंजस में हूँ कि अच्छीं कोई शब्द है या नहीं | ज्यादातर अच्छी और अच्छा यही शब्द प्रयुक्त होते देखा है | आपकी बातें सुनने में अच्छी लगती हैं | यहाँ बातें बहुवचन के साथ अच्छी ही प्रयोग हुआ | हालाँकि हैं से बहुवचन का काम हो गया | तन्हाईयाँ किसको अच्छी लगने वाली हैं |हमने लोगों को अच्छी अच्छी बातें बताई | यहाँ भी अच्छी प्रयोग हुआ | इसलिए मुझे भ्रम हो जाता है कि अच्छीं शब्द है या नहीं | कृपया मार्गदर्शन करें | इसी तरह होती और होतीं में भी मुझे कन्फ्यूजन रहता है |मिलें सही कर रहा हूँ | सादर आभार |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें
एक बात बताइयेगा कि ग़ज़ल का क़ाफ़िया बहुवचन में है और रदीफ़ 'अच्छी' एक वचन है?
'मिले उसको हमेशा झिड़कियाँ हरगिज़ नहीं अच्छी'
इस मिसरे में 'मिले' की जगह "मिलें" होना चाहिए न ?
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