इस घर से .... (200 वीं प्रस्तुति )
कितना
इठलाती थी
शोर मचाती थी
मोहल्ले की
नींद उड़ाती थी
आज
उदास है
स्पर्श को
बेताब है
आहटें
शून्य हैं
अपनी शून्यता के साथ
एक विधवा से
अहसासों को समेटे
झूल रही है
दरवाज़े पर
अकेली
सांकल
शायद
इस घर से
इस घर को
घर बनाने वाला
चला गया है
इक
बज़ुर्ग
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीया pratibha pande' जी आपकी आत्मीय सराहना से सृजन उपकृत हुआ। आपका हार्दिक आभार।
शायद
इस घर से
इस घर को
घर बनाने वाला
चला गया है
इक
बज़ुर्ग
नम कर रही है आपकी ये रचना आदरणीय ..हार्दिक बधाई आपको
आदरणीयडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना के भावों प्रोत्साहन देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
बढ़िया है, सरना जी
आदरणीय vijay nikore जी आपकी आत्मीय सराहना से सृजन उपकृत हुआ । आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी रचना के भावों प्रोत्साहन देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।बेहतरीन कविता।
आपकी रचना के भाव मन को छू गए हैं। हार्दिक बधाई, मित्र सुशील जी।
आदरणीया बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपकी आत्मीय सराहना से सृजन उपकृत हुआ। आपका हार्दिक आभार।
आदरणीया राजेश कुमारी जी भावों की गहनता को स्वीकृति देती आपकी आत्मीय सराहना से सृजन उपकृत हुआ। आपका हार्दिक आभार।
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