For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

22   22   22   22   22   22   22   2


दिल के तख़्त पे हाए हमने किस ज़ालिम को बिठा लिया 
दिल की बस्ती को ही उजाड़ा उसने ऐसा काम किया।

 

'लुटे हुए अरमानों को वापिस लाऊंगा' बोला था  
लेकिन जो था पास हमारे वो भी हमसे छीन लिया।

 

अब कहता है, इश्क़ में सब आशिक़ ऐसा ही करते हैं 
मैंने भी गर झूठे वादे किए तो कोई पाप किया।

 

कितनी बार रकीबों ने अरमानों के सर काटे हैं 
और वो बस इतना कहते हैं बुरा किया भई बुरा किया।

 

ये शुहरत का युग है झाड़ी ने ये बात समझ ली है 
खार को गुलदस्ता कहने का तभी तो भारी दाम दिया।

 

अब लगता है पहला दिलबर इससे कुछ तो अच्छा था 
इतना भी वो बुरा नहीं था जितना उसे बदनाम किया। 
              (मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 819

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 5, 2017 at 10:33pm
आदरणीय समर कबीर जी बहुत बहुत शुक्रिया.. आपके अनमोल सुझावों के लिए भी शुक्रिया..आपकी इस्लाह के मुताबिक ग़ज़ल में बदलाव कर लूँगा..सिर्फ़ एक छोटी सी बात दिल में आ रही है कि क्या मशहूरी जी जगह शोहरत करने से शेअर का अर्थ वही रहेगा सर जी या कोई और शब्द जैसे इश्तिहार जैसा कुछ इस्तेमाल किया जा सकता है.... दरअसल मेरा शब्द भंडार खासकर उर्दू में बहुत छोटा है..क्रुप्या मार्गदर्शन करें सर जी
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 5, 2017 at 10:25pm
इस ग़ज़ल के माध्यम से जो बात कहने कि कोशिश कि गई है, क्या ग़ज़ल उसे कहने में सफल हो पाई है ?? क्रुप्या बताइएगा
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 5, 2017 at 10:22pm
आदरणीय नीलेश जी शुक्रिया...इस ग़ज़ल में कई बातों को नज़रन्दाज़ किया है..मानता हूँ .केवल अपनी बात कहने तक ही केंद्रित रहा.आपकी बातों का ध्यान रखूंगा
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2017 at 10:16pm
आदरणीय गुरुप्रीत जी दिल के भावों को बखूबी पह किया है आपने प्रतिक्रियाओं के माध्यम से बहुत उम्दा जानकरी हासिल हुयी उस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:54pm

आ. गुरप्रीत जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ....आ. समर सर सबकुछ कह चुके हैं 
तंग क़ाफ़िये में दिया, सिया , पिया आदि भी इस्तेमाल हो सकते थे लेकिन आपने बेहतर निभाया...
बिठा थोडा चालू लगा... बैठा होना चाहिए जो बहर में नहीं आयेगा .
.

या तो लाऊंगा ..बोला था ...या लायेंगे ..बोले थे (बारीक़ बात है)
.
बाक़ी आपकी ग़ज़ल आपके दिल की आवाज़ है इसलिए बस मुस्कुरा रहा हूँ क्यूँ कि शाइरी में भई इस्तेमाल करने वाले आप पहले मिले हैं (बोलते सब हैं)....
ये देसीपन बनाए रखिये लेकिन कहन को आ. समर सर के बताये मुताबिक़ बेहतर भी करते चलिए..
शुभ शुभ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 8:36pm

आदरनीय गुरप्रीत भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये दिले से बधाइयाँ आपको । आदरनीय समर भाई जी की अस्लाह के बाद मिसरे और निखर गये हैं ... बधाइयाँ ।

Comment by Mohammed Arif on May 5, 2017 at 5:31pm
आदरणीय गुरप्रीत जी आदाब, बेहतरीन मात्रिक बह्र वाली ग़ज़ल । शे'र दर शे'र के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब सबकुछ बतला चुके हैं । उनकी बातों पर ग़ौर करें ।
Comment by Samar kabeer on May 5, 2017 at 2:52pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'उल्टा जो था पास हमारे वो भी हमसे छीन लिया'
इस मिसरे में 'उल्टा'शब्द मुनासिब नहीं लगता,इसकी जगह 'लेकिन'शब्द उचित होगा :-
'लेकिन जो था पास हमारे वो भी हमसे छीन लिया'

'मैंने भी गर झूटे वादे किये तो कैसा पाप किया'
इस मिसरे में 'कैसा'शब्द की जगह 'कोई'शब्द रखना उचित होगा:-
'मैंने भी गर झूटे वादे किये तो कोई पाप किया'

'मशहूरी का युग है झड़ी ने ये बात समझ ली है'
इस मिसरे में 'मशहूरी'शब्द ही नहीं है,इसलिये इस मिसरे को ऐसा कह सकते हैं:-
'ये शुहरत का युग है झाड़ी ने ये बात समझ ली है'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service