हमको बहुत लूटा गया,
फिर घर मेरा फूंका गया.
झगड़ा रहीम-औ-राम का,
पर, जान से चूजा गया.
दर पर, मुकम्मल उनके था,
बाहर गया, टूटा गया.
भारी कटौती खर्चो में,
मठ को बजट पूरा गया ,
मजलूम बन जाता खबर,
गर ऐड में ठूँसा गया. (ऐड = प्रचार/विज्ञापन/Advertisement)
उत्तम प्रगति के आंकड़े,
बस गाँव में, सूखा गया.
वादा सियासत का वही,
पर क्या अलग बूझा गया!!
है चोर, पर साबित नहीं,
दरसल, वही पूजा गया.
माझी, सयाना वो मगर,
मन से नहीं जूझा, गया.
----------- अगर ये गजल व्याकरण की दृष्टि से सही है, तो श्री सौरभ जी को समर्पित.
Comment
श्रीमान अश्विन कुमार जी: नमस्कार. आप द्वारा इस रचना को सराहे जाने को मेरा सादर धन्यवाद.
मै भी इस अश'आर की बह्र पहचानने में सक्षम नहीं हूँ. अनुभवी गुरुजन कृपया इसकी बह्र बतावें. धन्यवाद.
आदरणीय योगराजभाईसाहब, आज पुनः आपके समक्ष सादर नमन भाव प्रस्तुत करता हूँ.
आप सहित, आदरणीय, इस मंच पर जिन महानुभावों और सदस्यों के प्रति नत हो कर हमने कुछ महीनों पूर्व ही उन्हें ’साहित्यिक ठठेरा’ कहा था, आज उसी विशेषण से आप द्वारा स्वयं को नवाजा जाना पुलकित तो कर ही रहा है, मंच की कसौटियों को सार्वभौमिक भी कर रहा है. आपको पुनः सादर नमन, आदरणीय योगराजभाईसाहब.
//हमको बहुत लूटा गया,
फिर घर मेरा फूंका गया.// बहुत ही सुंदर मतला, सीधा सादा मगर असरदार - वाह.
//झगड़ा रहीम-औ-राम में,
पर, जान से चूजा गया.// बहुत खूब ! "झगड़ा रहीम-औ-राम में" - "झगड़ा रहीम-औ-राम का" कर के देखें ऐब-ए-तनाफुर दूर होगा.
//दर पर, मुकम्मल उनके था,
बाहर गया, चूरा गया.// वाह वाह ! यहाँ "चूरा" की जगह "टूटा" क्या ज्यादा बढ़िया न रहता?
//भारी कटौती खर्चो में,
मठ को बजट पूरा गया ,// क्या कहने हैं, क्या बात है, बेहतरीन शेअर !
//हर बात बन जाती खबर,
गर ऐड में ठूँसा गया.// (ऐड = प्रचार/विज्ञापन/Advertisement) शेअर के भाव बहुत सुंदर हैं, लेकिन पहले मिसरे में "जाती" और "खबर" (स्त्रीलिंग) और दूसरे में "गया" (पुल्लिंग) से ऐब (शुतरगुरबा) पैदा हो रहा है.
//उत्तम प्रगति के आंकड़े,
बस गाँव में, सूखा गया.// बेहतरीन शेअर, इस पर एक्स्ट्रा दाद !
//बातें सियासत की वही,
पर क्या अलग बूझा गया!!// बहुत सुंदर !
//है चोर, पर साबित नहीं,
दरसल, वही पूजा गया.// शेअर बहुत सुंदर है लेकिन "दरअसल" को "दरसल" कहना इल्म-ए-अरूज़ की रू से दुरुस्त नहीं है बंधुवर.
//माझी, सयाना वो मगर,
मन से नहीं जूझा, गया.// अय हय हय हय !! क्या ही बहुआयामी शेअर कहा है, बहुत ही कमाल का मकता कहा है, आनद आ गया. इस सुंदर प्रयास के लिए मेरी दिली बधाई स्वीकार करें.
Rakesh ji aapki mehnat,prayaas aur Saurabh ji dwara sudhaar dono ko salaam ab ek mukammal ghazal nikal kar aai hai bahut badhiya daad kabool karen.
आदरणीय सौरभ भाई जी, क्या गज़ब का विश्लेषण किया है - वाह वाह वाह !! जिस तरह आपने एक-एक मिसरे पर बात की है वह काबिल-ए-दाद भी है और काबिल-ए-दीद भी. आपके एक एक बिंदु का अनुमोदन न करना बेईमानी होगी. आपका यह विश्लेषण खुद मेरे लिए एक पाठ की तरह है, आपके इस अरूज़ी ठठेरेपन को कोटिश: नमन.
अग्रज एवम अनुज को सादर अभिवादन एवम स्नेहाशीष ,,आप दोनों की कृपा से यह गजल लगभग ठोंक बजा कर सुधर कर निखर कर सामने आ गई ,आदरणीय राकेश जी मै तो गजल को गेयता /स्वर की दृष्टि से ही समझ पाता हूँ ,,और जहां तक मेरे समझ की बात है तो इस विषय मे अज्ञ हूँ मुझे इस विषय में थोड़ा (उंगली पहले पकड़ी जाती है :) मगर बहुत ढेर सारा )मार्गदर्शन चाहिए ,,अभी एक गजल सुन रहा हूँ ,,लेकिन मुझे इसकी बह्र समझ नही आ रही है||तुम पूछो और मै न बताऊँ ऐसे तो हालात नही,,एक जरा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नही ,, .................
श्री प्रदीप जी, सादर नमस्कार. आपने हर कदम पर हौसला बढाया है और सही मार्ग दिखाया है, आपको पुनः बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री वीनस जी, नमस्कार भाई. आपकी विनोद पूर्ण उपस्थिति एवं शिक्षा युक्त कमेन्ट से मंच एवं मुझ जैसे विद्यार्थियों को काफी मजा आता है सीखने के दौरान. आप अपना ये अंदाज बनाए रक्खे. (और हाँ ये बात सच है की विनोद एवं निंदक हर किसी के लिए नहीं होता :))
गुरुवर श्री सौरभ जी: सादर प्रणाम. आपने जिन गलतियों को उजागर किया है, उनको तुरंत ठीक करता हूँ. और ओ बी ओ तो विद्यालय है, अभी डिग्री मिली नहीं है, एक दो कक्षाएं ही पास की हैं. इस मंच को तो प्रथम दिन से ही प्रणाम था, अब एक बार स्नातक हो जाएँ तो फिर कुछ और बात होगी. और आप तो प्रथम गुरु हैं, आप का अधिकार प्रथम.
वीनसभाई,
क्या भाई ? आप भी जो न समर्पित करा दें. बह्र का दोष बहरिया गया, सही है. मगर, सही खेल तो इसके बाद शुरु होता है न.. .!?
जय हो...............
भाईराकेशजी, आपकी यह ग़ज़ल बह्र के लिहाज से पूरी तरह से सधी हुई है. आपका प्रयास हृदय को अभिभूत करने वाला है.
अब हम अवश्य ही ग़ज़ल की कहन और अन्य बातों तथा भावों की चर्चा कर सकते हैं.
हमको बहुत लूटा गया,
फिर घर-दुकाँ फूंका गया.
सानी में घर-दुकां बहुवचन को सूचित करते हैं. इस हिसाब से ’फूँका गया’ उचित प्रतीत होता है क्या ? कृपया देख कर मुझे भी कहियेगा. दूसरे, लूट और फूँक मायने वाले शब्द हैं, जिनमें काफ़िया का ’आ’ लगा है. देख लीजियेगा, यह भी उचित नहीं माना जाता.
झगड़ा रहीम-औ-राम में,
पर, जान से चूजा गया. ..
यह तो हासिले ग़ज़ल है.. अलीफ़-वस्ल का क्या ही खूबसूरत प्रयोग हुआ है. कहन से अति समृद्ध इस शे’र के लिये राकेश भाई दिल से शुक्रिया कह रहा हूँ.
दर पर, मुकम्मल उनके थे,
बाहर गया, चूरा गया.
उला में व्यक्तिवाची भाव है, लेकिन सानी में अन्य के प्रति कहा गया प्रतीत होता है. थे को था किया जाय तो यह दोष दूर होता दिखता है.
भारी कटौती खर्चो में,
मठ को बजट पूरा गया ,
वाह-वाह ! .. दिखावे पर खूब खर्च होने का सटीक वर्णन हुआ है.
हर बात बन जाती खबर,
गर ऐड में ठूँसा गया.
टीवी के न्यूज चैनेलों के खबरों की सचाई. ऐड से बचे समय में जो कुछ है वही खबर है. मगर उला और सानी के दरम्यान ये क्या कर बैठे हैं ? शुतुर्गुर्बा का दोष होगया, भाई जी. उला की ’स्त्रीलिंग’ सानी तक आते-आते ’पुल्लिंग’ होजाती है.
उत्तम प्रगति के आंकड़े,
बस गाँवों में, सूखा गया.
बहुत सुन्दर प्रयास.हुआ है, राकेशभाई. वैसे, सानी के मिसरे को बस गाँव में सूखा गया किया जाय तो देखिये संप्रेषणीय़ता बढ़ी दीखती है !
बातें सियासत की वही,
पर क्या अलग बूझा गया !!
बहुत सुन्दर कहन.. बधाई ! क्या को क्यों किया जाय तो शुतुर्गुर्बा का प्रतीत होता दोष भी सध सकता है.
है चोर, पर साबित नहीं,
दरसल, वही पूजा गया.
इस शे’र पर भी दिल से दाद कुबूल फ़रमायें.
माझी, सयाना वो मगर,
मन से नहीं जूझा गया.
इस शे’र में बहुत ही महीनी दीखती है. आप सानी में जूझा के बाद कॉमा लगा दें. फिर कमाल देखिये.
बहुत-बहुत बधाई, राकेशभाई. उपरोक्त सुझाव मेरे व्यक्तिगत सुझाव मात्र हैं. आपकी जागरुक दृष्टि स्वयं बहुत कुछ परख लेती है.
लेकिन एक बात की शिकायत है. आप इतने अच्छे ग़ज़ल-प्रयास को मुझ ख़ाकसार को समर्पित कर अपने अभ्यास और लगन दोनों की कीमत गिरा बैठे. इस मंच और यहाँ के सत्संग से हमने बहुत कुछ सीखा है.
इस सत्संग को सादर नमस्कार.
ग़ज़ल श्री सौरभ जी को समर्पित हो चुकी समझें ....
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