गीत
*****
उजाला कर दिया उसने
चलें उस ओर हम-तुम भी।।
*
तमस के गाँव में रह कर
सदी बीती हमारी भी।
अभी तक ढो रहे हैं बस
वही थोपी उधारी भी।।
*
नहीं प्रयास कर पाये
कभी इससे निकलने का।
बढ़ाया हाथ उस ने जब
लगायें जोर हम तुम भी।।
**
न जाने कौन सी ग्लानी
मिटा उत्साह देती नित।
नहीं साहस जुटा पाता
सँभलने का हमारा चित।।
*
सफलता है नहीं आयी
भला क्यों पथ हमारे ही।
तनिक मष्तिष्क से सोचें
नहीं हैं ढोर हम- तुम भी।।
**
हमारे हित सदा बोला
हमारे हित लड़ा है वो।
भँवर, मझधार तूफाँ में
हमारे हित खड़ा है वो।।
**
अकेला क्यों लड़े तम से
चलो अब साथ दें उसका।
मिला स्वर साथ उसके यूँ
मचाएँ शोर हम - तुम भी।।
**
तरसते कल तलक आये
उजाला जीत बन देखो।
हमारे पथ चला है जो
उजाला रीत बनकर अब।।
**
नहीं स्वीकार तम है तो
विवश क्यों जी रहे इसको।
जलाया दीप है उस ने
रचें नव भोर हम-तुम भी।।
***
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।
गीत को नया कलेवर दे आपने इसे समृद्ध कर दिया। निश्चित तौर पर गीत की बारीकियों को सीखने में समय लगेगा। विश्वास है आपके मार्गदर्शन में धीरे धीरे गीत लेखन परिपक्व हो जायेगा। आपकी अनुकम्पा बनी रहे यही आकांक्षा है। सादर
प्रत्युत्तर में विलम्ब हुआ । इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, एकाकी प्रयास-रत दीप को लेकर आपने जो रचना-कर्म किया है वह वस्तुतः श्लाघनीय है.
निवेदन है, इस रचना को कृपया अधोलिखित कलेवर में देखें.
यदि उचित प्रतीत हो तो सूचित कीजिएगा.
उजाला कर दिया उसने
बढ़ें उस ओर हम-तुम भी।।
*
तमस के गाँव में रह कर
सदी बीती हमारी है ।
अभी तक ढो रहे हैं जो
हमारे सिर उधारी है।।
*
नहीं मन को जगा पाये
कभी इससे निकलने का।
लगन ऐसी दिखी है तो
लगाएँ जोर हम तुम भी।।
**
न जाने कौन सी उलझन
निरुत्साही बना देती
नहीं साहस जुटा पाते
लसरने को मना लेती
*
सफलता क्यों नहीं आयी
अभी तक पथ हमारे ही ?
तनिक सोचें, विचारें मिल
नहीं हैं ढोर हम-तुम भी।।
**
हमारे हित जला करता
हमारे हित लड़ा है वो।
भँवर, मझधार तूफाँ में
हमारे हित अड़ा है वो।।
**
लड़े तम से अकेला वो
यही अकसर भला क्यों हो
भरी मुट्ठी लिये किरनें
उगाएँ भोर हम-तुम भी।।
**
तरसते थे, तरसते हैं
मगर नभ थाम तो देखें
गया दिन जो बिसुरता-सा
किलकती शाम तो देखें ॥
**
नहीं स्वीकार है तम जो
भला क्यों झेलते हैं हम
उजाला चाहिए, खुल कर..
मचाएँ शोर हम-तुम भी ॥
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब , अच्छा गीत हुआ है, बधाई स्वीकार करें I
बहुत सुन्दर और भावप्रण गीत के लिए बधाई आदरणीय धामी जी...
आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति, स्नेह, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।। आप सभी के सहयोग से गीत लेखन में सुधार का प्रयास जारी है। निम्न बदलाव किए हैं मार्गदर्शन कीजिए।
/नहीं कोशिश हुई हमसे
कभी इससे निकलने की।
*
/तनिक सोचें गहनता से
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, सुंदर गीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी //नहीं प्रयास कर पाये
कभी इससे निकलने का।//... इस पंक्ति में प्रवाह बाधित है. मस्तिष्क. सादर
आ. भाई महेन्द्र जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद
//नहीं साहस जुटा पाता
सँभलने का हमारा चित।।// को इस प्रकार देखें
नहीं साहस सँभलने का
जुटाता चित्त संकल्पित।।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गीत की प्रशंसा के लिए आभार।
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