१-डर
भयातुर आँखें
शक की नज़रों से देखती सबको
विसंगतियों और क्रूरताओं से भरा यह समाज
कब क्या कर बैठे किसे पता
२-सत्य
जीवन एक तहखाना है
हम सब कैदी
जो ईश्वर से प्यार नहीं करता
वह बार बार यहाँ पटक दिया जाता है
और जो ईश्वर से प्यार करता है
वह हमेसा के लिए मुक्त हो जाता है
३-रहस्य
ये कैसा रहस्य है
सारी उन्मनता.
सारी व्यग्रता
सारी म्लानता
तुम्हारे नेह की तरलता में
घुल जाती है
४-पता है
पता है न
दर्पण सच बताता है
जब असत्य का दर्पण टूटेगा
खुद का विकृत चेहरा
क्या?देख पाओगे
५- माँ
जब मै छोटा था
आप ही कहती थी
मरने के बाद लोग तारे बन जाते है
रात भर जागता हूँ
उदास तारों के बीच
खोजता रहता हूँ
एक हँसते तारे को
शायद!
किसी एक तारे में
मेरी माँ हँसती हुई दिख जायॆ
*********************************
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी। सादर
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं प्रस्तुत की हैं प्रिय राम शिरोमणि जी
हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी,आपका आशीर्वाद मिलना ही मेरे लिए बहुत बड़ा उपहार है…सदैव प्रयासरत रहूँगा ।सादर
अतुकान्त क्षणिकाओं के लिए बधाई भाई राम शिरोमणिजी. आप जिस तरह से सतत प्रयास कर रहे हैं वह आपकी लगन का परिचाय है. आपक यह प्रयास दीर्घकालिक हो.
शुभ-शुभ
many many thanks to you respected gopal narain ji....
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई सत्यनारायण जी …सादर
आ. रामशिरोमणि जी सभी क्षणिकाएं सुन्दर और भाव से पूर्ण है. हार्दिक बधाई.
Deepak Ji
I really enjoyed your sentiments.
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी ।सादर
आदरणीय सभी क्षणिकायें सुन्दर बन पड़ी है !!! आपको बधाई !!!!
पता है न
दर्पण सच बताता है
जब असत्य का दर्पण टूटेगा
खुद का विकृत चेहरा
क्या?देख पाओगे -----------------इस क्षणिका के लिये विशेष दाद कुबूल करें !!!!
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