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ग़ज़ल ( तिजारत कैसे की जाए.....)

1222 1222 1222 1222

तिजारत कैसे की जाए हुआ है फैसला जब से
बड़ी किल्लत है पानी की लहू सस्ता हुआ जब से

मशीनें अब यहाँ पर और महंगी क्यों नहीं होंगी?
वतन में मुफ़्त ही इंसान भी मिलने लगा जब से

हमारा शह्र छोटा था मगर मिलता नहीं था वो
हमें अक्सर बुलाता है नयी दिल्ली गयाा जब से

समय के साथ कम होगी यही हम सोच बैठे थे
ये दूरी कम नहीं होती मिटा है फासला जब से

नयी शक्लें दिखाता था कभी जब सामने आया
नहीं जाता है कमरे में रखा है आइना जब से

सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देता

बहुत वीरान है रस्ता चला है क़ाफ़िला जब से

बयां करना भी मुश्किल है अभी हालात ऐसे हैं
मैं सांसें ले नहीं सकता हुई ताज़ा हवा जब से

* मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सालिक गणवीर on May 15, 2020 at 8:26am

आदरणीय समर कबीर साहब

आदाब

  1. आप अंदाजा नहीं लगा सकते आपका यह एक जुमला मेरे लिए क्या मायने रखता है!बहुत शुक्रिया आपका. आशा करता हूँ कि भविष्य में भी आपका यही स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
Comment by Samar kabeer on May 12, 2020 at 3:08pm

आप अच्छा लिखते हैं,और छोटी मोटी ग़लतियाँ तो किसी से भी हो सकती हैं,प्रयासरत रहें,शुभेच्छाएँ ।

Comment by सालिक गणवीर on May 12, 2020 at 2:17pm
आदरणीय समर कबीर साहब
बहुत शुक्रगुज़ार हूँ जो आपने इतना समय दिया.गलतियाँ बताईं, वर्ना मैं तो इसी मुगालते में था कि मैं बढ़िया लिख रहा हूँ. एक बार फिर बहुत शुक्रिया.
Comment by Samar kabeer on May 12, 2020 at 11:35am

'हमारा शह्र छोटा है मगर मिलता नहीं था वो
अभी अक्सर बुलाता है नयी दिल्ली गया जब से'

ठीक है,सानी में 'अभी' की जगह "हमें" कर लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2020 at 9:32am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। कुछ कमियों के बावजूद अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by सालिक गणवीर on May 12, 2020 at 9:04am

आदरणीय समर कबीर साहब

आदाब.

पहले शे'र को दुरूस्त करने की कोशिश की है

"हमारा शह्र छोटा है मगर मिलता नहीं था वो
अभी अक्सर बुलाता है नयी दिल्ली गया जब से."

आपके इस्लाह और मार्गदर्शन की दरकार है. वक़्त मिलने पर जवाब देंं

Comment by सालिक गणवीर on May 11, 2020 at 1:30pm
आदरणीय तेज वीर सिंह जी
हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ.
Comment by TEJ VEER SINGH on May 11, 2020 at 11:58am

हार्दिक बधाई आदरणीय सालिक गणवीर जी। बेहतरीन गज़ल।

तिजारत कैसे की जाए हुआ है फैसला जब से
बड़ी किल्लत है पानी की लहू सस्ता हुआ जब से

Comment by Samar kabeer on May 11, 2020 at 11:33am

// अब मैं सोचता हूँ ओबीओ की सदस्यता ग्रहण करने में देर क्यों लगा दी!!//

जब जब जो जो होना है,तब तब सो सो होता है ।

Comment by Samar kabeer on May 11, 2020 at 11:31am

//हमारा शह्र छोटा था तो अक्सर भेंट होती थी
कभी तो लौट कर आता नयी दिल्ली गया जब से
2.सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देता
बहुत वीरान है रस्ता चला है क़ाफ़िला जब से//

दूसरा ठीक है, पहले पर अभी मिहनत करना होगी ।

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