२२१/२१२१/१२२१/२१२
जिसके लिए स्वयं को यूँ पाषान कर गये
दो फूल उसके आपको भगवान कर गये।१।
**
कारण से कुछ के मस्जिदें बदनाम हो गयीं
मन्दिर को लोग कुछ यहाँ दूकान कर गये।२।
**
करता रहा था जानवर रखवाली रातभर
बरबाद दिन में खेत को इन्सान कर गये।३।
**
अपनी हुई न आज भी पतवार कश्तियाँ
क्या खूब दोस्ती यहाँ तूफान कर गये।४।
**
दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब
मरकर भी अपनी देह जो यूँ दान कर गये।५।
**
माटी भी उनके पाँव की हमको अजीज है
जो भी वतन के इश्क में विषपान कर गये।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, संज्ञान के लिए आभार ।
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, आदाब। जी आपने ठीक कहा है कि इंगित मिसरा बह्र में है। गणना में मुझसे चूक हुई है, क्षमा करें।
आ. भाई सालिक गणवीर जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।
आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति से मानवर्धन के लिए आभार ।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी , सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।
#कारण से कुछ के - का मतलब कुछ लोगों के करण है । मेरे हिसाब सेइंगित मिसरा भी बह्र में ही है । सादर ..
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी
सादर अभिवादन
क्या खूब दोस्ती यहाँ तूफान कर गए.।वाह
एक और अच्छी ग़ज़ल के लिए मेरी शुभकामना स्वीकारें.
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब। अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें। कुछ सुझाव प्रस्तुत कर रहा हूंँ, यदि ठीक लगें तो अपना सकते हैं अन्यथा नज़र अन्दाज़ कर दीजिएगा ।
मतले का भाव स्पष्ट नहीं हो पा रहा है ग़ौर कीजियेगा।
"कारण से कुछ के मस्जिदें बदनाम हो गयीं" यहांँ 'कारण से' के स्थान पर 'कारण थे' कर सकते हैं।
"दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब". यह मिसरा बह्र से खारिज हो रहा है, "दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी कहीं " कर सकते हैं
सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online