For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चीन के नाम (नज़्म - शाहिद फ़िरोज़पुरी)

212  /  1222  /  212  /  1222

दुनिया के गुलिस्ताँ में फूल सब हसीं हैं पर
एक मुल्क ऐसा है जो बला का है ख़ुद-सर
लाल जिसका परचम है इंक़लाब नारा है
ज़ुल्म करने में जिसने सबको जा पछाड़ा है

इस जहान का मरकज़ ख़ुद को गो समझता है
राब्ता कोई दुनिया से नहीं वो रखता है
अपनी सरहदों को वो मुल्क चाहे फैलाना
इसलिए वो हमसायों से है आज बेगाना

बात अम्न की करके मारे पीठ में खंजर
और रहनुमा उसके झूट ही बकें दिन भर
इंसाँ की तरक़्क़ी में जिसका कुछ नहीं हिस्सा
बे-हयाई में लेकिन क्या मुक़ाबला उसका

है वो मुल्क आमादा बस लहू बहाने पर
वो बशर को ले आया मौत के दहाने पर
दुनिया के मुमालिक को तुहफ़े दे वबाओं के
और फिर करे सौदे लाज़मी दवाओं के

भेड़ों जैसे बाशिंदे सीधे सीधे चलते हैं
हाकिमों के टुकड़ों पर मुश्किलों से पलते हैं
हक़ नहीं है उनको ये मीर चुन सकें अपने
ज़ुल्म देख कर भी वो बंद लब रखें अपने

क़ौम है ये कैसी और कैसी इसकी हैं क़द्रें
दूसरों की दौलत पर इसकी हैं सदा नज़रें
रहम और शफ़क़त के जज़्बों से ये आरी हैं
धरती माँ के सीने पर बोझ कितने भारी हैं

बैट केकड़ा मछली साँप टिड्डियाँ मेंढक
सब मकोड़े छिपकलियाँ मकड़ी च्यूँटी चूहे तक
बिल्लियाँ भी कुत्ते भी ये ख़ुशी ख़ुशी खाएँ
तल के भून के या फिर कच्चे ही निगल जाएँ

ज़िन्दगी-ओ-क़ुदरत पे फ़िक्र तक नहीं इनका
इल्म की किताबों में ज़िक्र तक नहीं इनका
एक ऐसा आलिम है जिसको ये ख़ुदा मानें
झूट और दग़ाबाज़ी उसका फ़लसफ़ा जानें

नक़्ल में ये माहिर हैं इनका कुछ नहीं अपना
कुछ बनाना बिन चोरी इनके वास्ते सपना
ये ज़बाँ समझते हैं ज़र की और ताक़त की
क़द्र ये नहीं करते हक़ की और शराफ़त की

अब सबक़ जहाँ ने इस मुल्क को सिखाना है
बंद कर तिजारत को ठीक रह पे लाना है
जब ये पूरी दुनिया में ख़ुद को तन्हा पाएगा
अहमियत रफ़ाक़त की तब ये जान जाएगा

वैसे ये नहीं 'शाहिद' लहज-ए-कलाम अपना
पेश करना था बस इक मुल्क को सलाम अपना
फ़ख़्र है जिसे अपनी ना-हक़ीक़ी अज़मत पर
ग़ौर जो नहीं करता अपनी ही जहालत पर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
––––––––––––––––––––––––––––
कठिन शब्दों के अर्थ:
1. ख़ुद-सर = अड़ियल, घमंडी, stubborn, arrogant, rude
2. मरकज़ = केंद्र, centre (चीन के लोग अपने देश को 'Middle Kingdom' मानते हैं)
3. आमादा = तैयार, तत्पर, ready
4. मुमालिक = मुल्क का बहुवचन, countries
5. बाशिंदे = नागरिक, citizens
6. क़द्रें = मूल्य, values
7. शफ़क़त = प्रेम, affection, kindness
8. आरी = रहित, वंचित, devoid
9. फ़िक्र = सोच-विचार, thought
10. आलिम = विद्वान, scholar
11. ज़र = पैसा, wealth, gold
12. हक़ = सच, truth
13. रफ़ाक़त = दोस्ती, friendship, companionship
14. ना-हक़ीक़ी = अवास्तविक, unreal
15. अज़मत = प्रतिष्ठा, greatness
16. जहालत = अज्ञानता, जड़ता, ignorance, stupidity

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 7, 2020 at 1:11am

आदरणीय Dr. Vijai Shanker साहिब, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हूँ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 6, 2020 at 9:35pm

शानदार प्रस्तुति , बहुत बहुत बधाई , आदरणीय रवि भसीन शाहिद जी , सादर।

Comment by Samar kabeer on July 6, 2020 at 12:19pm

ठीक है, एडिट कर दें ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 5, 2020 at 4:56pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब, आप से निरंतर मिल रहे प्रोत्साहन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया पेश करता हूँ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 5, 2020 at 4:54pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आपकी नवाज़िश और भरपूर हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 5, 2020 at 4:52pm

जी, मुझसे ग़लती से उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की टिप्पणी delete हो गई है, जिसके लिए उस्ताद जी से और सभी साथियों से बेहद माज़रत चाहता हूँ। उनकी तमाम इस्लाह और सारी हिदायात मैंने नीचे अपने जवाब में डाल दी हैं।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 5, 2020 at 4:37pm

आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम Samar kabeer साहिब, सादर प्रणाम! आपकी बहुमूल्य इस्लाह के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया! सर, कुछ बदलाव करने का प्रयास किया है:

/और रहनुमाँ उसके झूट ही बकें दिन भर
'रहनुमाँ' को 'रहनुमा' कर लीजिये/
जी, बहतर है।

/इंसाँ की तरक़्क़ी में हिस्सा कुछ नहीं जिसका
बे-हयाई में लेकिन क्या मुक़ाबला उसका/
उस्ताद जी, अगर यूँ कहा जाए तो:
212 / 1222 / 212 / 1222
इंसाँ की तरक़्क़ी में जिसका कुछ नहीं हिस्सा
बे-हयाई में लेकिन क्या मुक़ाबला उसका

/हाकिमों को चुनने का हक़ नहीं उन्हें लेकिन
देखें ज़ुल्म वो सारे कुछ न वो कहें लेकिन/
उस्ताद जी, अगर यूँ कहा जाए तो:
212 / 1222 / 212 / 1222
हक़ नहीं है उनको ये मीर चुन सकें अपने
ज़ुल्म देख कर भी वो बंद लब रखें अपने

/धरती माँ के सीने पर बोझ कितना भारी हैं
इस मिसरे में 'कितना' को 'कितने' कर लीजिये/
जी, ठीक है।

'फ़िक्र' के बारे में जैसा आपने फ़ोन पर बताया कि कहीं कहीं क़दीम शोअरा ने इस शब्द को पुल्लिंग के तौर पर भी इस्तेमाल किया है, इसलिए ये मिस्रा इसी तरह रखने की इजाज़त चाहूँगा:
ज़िन्दगी-ओ-क़ुदरत पे फ़िक्र तक नहीं इनका

/वैसे ये नहीं 'शाहिद' लहजा-ए-कलाम अपना
सहीह लफ़्ज़ है 'लहज-ए-कलाम'/
जी, बहतर है।

/ग़ौर पर नहीं जिसका अपनी ही जहालत पर
इस मिसरे को यूँ कर लें:
ग़ौर जो नहीं करता अपनी ही जहालत पर/
जी, बहतर है।

आपकी तमाम इस्लाह के अनुसार नज़्म में संशोधन कर दूँगा, सर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2020 at 6:21am

आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । इस अति उत्तम रचना के लिए ढेरों बधाइयाँ ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 3, 2020 at 11:18pm

मुहतरम जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी।

इस ज़बरदस्त प्रस्तुति और  जज़्बे के लिए आपको सलाम पेश करता हूँ, उस्ताद मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब व अन्य गुणीजनों के आशीर्वाद उपरांत आपकी यह रचना मील का पत्थर होने जा रही है। मेरी भी शुभकामनाएं स्वीकार करें। सादर।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 3, 2020 at 12:45pm

जी कृप्या पहली पंक्ति यूँ पढ़ें:

दुनिया के गुलिस्ताँ में फूल सब हसीं हैं पर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
6 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
8 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
20 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service