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कितना मुश्किल होता है - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२


रात से बढ़कर दिन में जलना कितना मुश्किल होता है
सच कहता हूँ निज को छलना कितना मुश्किल होता है।१।

**
जब रिश्तों के बीच में ठण्डक हद से बढ़कर पसरी हो
धूप से बढ़कर छाँव में चलना कितना मुश्किल होता है।२।

**
पेड़ हरे में जो भी मुश्किल सच में हल हो जाती पर
ठूँठ बने तो धार में गलना कितना मुश्किल होता है।३।

**
साथ समय तो लक्ष्य सरल पर समय हठीला होने से
सच में धारा संग भी चलना कितना मुश्किल होता है।४।

**
चाहे जितनी आग धधकती मन में बरसों जाये पर
पत्थर जैसी बर्फ पिघलना कितना मुश्किल होता है।५।

**
स्वर्ण कलश में विष पीने की अभिलाषा जो पाले हों
कण्ठ जलाये तो भी उगलना कितना मुश्किल होता है।६।

( ५ मई २०२० )

मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 6, 2020 at 4:42pm

आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, स्नेह व प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 6, 2020 at 4:41pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, स्नेह व प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on August 6, 2020 at 1:55pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 6, 2020 at 11:24am

हार्दिक बधाई आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।

चाहे जितनी आग धधकती मन में बरसों जाये पर
पत्थर जैसी बर्फ पिघलना कितना मुश्किल होता है।५।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 6, 2020 at 7:21am

आ. भाई आशीष जी, सादर आभार ।

Comment by आशीष यादव on August 5, 2020 at 1:51pm

उम्दा शे'रों से सजी नायाब ग़ज़ल। दिली मुबारकबाद है।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2020 at 4:12am

आ. भाई  बृजेश जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना केे लिए आभार ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 4, 2020 at 10:12pm

बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई है आदरणीय...बधाई

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