अछूतों से भी मत करना कभी व्यवहार अछूतों सा
समय तुम को न इस से दे कहीं दुत्कार अछूतों सा।१।
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कहोगे भार जब उनको तुम्हें कोसेगा अन्तस नित
कहोगे तब स्वयम् को ही यहाँ पर भार अछूतों सा।२।
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करोना वैसा ही लाया करें व्यवहार जैसा हम
उसी का भोगता अब फल लगे सन्सार अछूतों सा।३।
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पता पाओगे पीड़ा का उन्हें जो नित्य डसती है
कहीं पाओगे जग में जब कभी सत्कार अछूतों सा।४।
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सभी के वास्ते क्या क्या मलिन वो काम करते नित
नहीं उस पर भी करते क्यों कहो आभार अछूतों सा।५।
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बुरा देखा न उनका पर करे कोई तो कहते क्यों
रखे है देखिए कैसा बुरा आचार अछूतों सा।६।
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( रचना : ३१ जुलाई २०२० )
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
*( गुमनाम पिथौरागढ़ी जी की भूमि पर कुछ बदलाव के साथ )
Comment
आ. भाई बृजेश जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए आभार ।
आदरणीय धामी जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है परंतु मतले का उला खटक रहा है...
"वगरना वक़्त दे देगा तुम्हे दुत्कार अछूतों सा" कैसा रहेगा? या आप ही कुछ और विचारें..सादर
आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । आपको गजल अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । इस स्नेह के लिए आभार।
आशा है भविष्य में भी स्नेह व मार्गदर्शन की क्रिपा बनाए रखेंगे ।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, इस पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
अछूतों से भी मत करना कभी व्यवहार अछूतों सा
समय तुम को न इस से दे कहीं दुत्कार अछूतों सा।१।
आ. भाई आशीष जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।
बहुत बढ़िया गजल बनी है। मुबारकबाद स्वीकार हो।
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
भाई लक्षण धामी 'मुसाफिर'
सादर अभिवादन
अलिफ वस्ल का शानदार इस्तेमाल कर आपने बढ़िया ग़ज़ल कही है.बधाइयाँँ.
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