122 122 122 12
नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे
मज़ा ले रहा है सता कर मुझे
अगर मेरे अंदर समाया है तू
कभी आइने में दिखा कर मुझे
हमेशा मिला है तू रोते हुए
मिला कर कभी मुस्कुरा कर मुझे
सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ
सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे
है डर कुर्सियों के नगर में यही
न वो बैठ जाए उठा कर मुझे
धड़कता हूँ मैं शोर करता नहीं
मैं दिल हूँ तेरा ही सुना कर मुझे
बुरे वक़्त में तेरे काम आऊँगा
कभी देखना आजमा कर मुझे
उठा कंधों पे थे सभी चल रहे
कहाँ चल दिए अब दबा कर मुझे
*मौलिक एवं अप्रकाशित.
Comment
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीया डिंपल शर्मा साहिबा
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
आदरणीय समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.इस्लाह के लिये शुक्रिय: अमल कर दिया जनाब.
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.नाचीज़ ममनून है जनाब.
आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
जनाब अमीर जी ने अच्छे मशविरे दिए हैं, आप संज्ञान भी ले चुके हैं ।
'सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ
सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे'
इस शैर का सानी मिसरा बह्र में नहीं है, शैर यूँ कह सकते हैं:-
'हमेशा मुझे हुक्म देता है तू
कभी मशविरा भी दिया कर मुझे'
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.आपकी क़ीमती इस्लाह केे लिए ममनून हूँ जनाब।
आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, कई इन्सानी जज़्बात आपकी इस प्यारी सी ग़ज़ल में उभर कर सामने आए हैं, लेकिन कुछ सुधार ज़रूरी हैं अपनी जानिब से कुछ मशविरे पेश करता हूँ अगर सहमत हों तो लागू कर सकते हैं :
"नहीं आ सका फिर बुला कर मुझे
मज़ा ले रहा है सता कर मुझे" ऊला में "नहीं आ सका" में मजबूरी झलकती है जबकि सानी में शरारत इसलिए
नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे ऊला यूँ कर सकते हैं।
"अभी तक तो बस हुक़्म देते रहे
सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे" इस शे'र में शुतुरगुर्बा दोष है इसलिए
सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ ऊला यूँ कर सकते हैं। "हुक्म" में नुुक़्ता नहीं लगेेगा।
"है डर कुर्सियों के नगर में यही
न वो बैठ जाए उठा कर मुझे" "शह्र" का वज़्न 12 इसलिए ऊला में "शहर" को "नगर" और सानी में "ना" को "न" कर लें
"धड़कता हूँ मैं शोर करता नहीं
तेरा दिल हूँ तो फिर सुना कर मुझे" सानी में "तेरा दिल हूँ तो" में शक का आभास होता है इसे यक़ीन में बदलिये :
मैं दिल हूँ तेरा ही सुना कर मुझे कर सकते हैं।
"बुरे वक़्त में तेरे काम आउंगा
तभी देखना आजमा कर मुझे ऊला में "आउंगा" को "आऊँगा" तथा शिल्प की दृष्टि से सानी में "तभी" को "कभी"
कभी देखना आज़मा कर मुझे कर सकते हैं। आज़माकर में नुक़्ता लगा लें।
"अभी साथ में चल रहे थे सभी
कहाँ चल दिए सब दबा कर मुझे" इस शे'र का भाव स्पष्ट नहीं है, स्पष्टता और रवानी के लिए यूँ कर सकते हैं :
उठा कंधों पे थे सभी चल रहे
कहांँ चल दिए अब दबा कर मुझे सादर।
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