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ये तितलियाँ ये फूल भी सकते में आ गए..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

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ये तितलियाँ ये फूल भी सकते में आ गये
जब पेड़ चल के ख़ुद ही बगीचेे मेंं आ गए

कल तक मिरे अज़ीज़ अंँधेरों में क़ैद थे
आंँखें रगड़ - रगड़ के उजाले में आ गये

नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये

मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये

कह कर गए थे है ये मुलाक़ात आख़िरी

जैसे ही आँख झपकी वो सपने में आ गए

ग़ैरों में उनको ढूँढ रहा था मगर जनाब
दुश्मन तो आजकल मिरे ख़ेमे मेंं आ गये

वादा किया था धूप में चलने का रात में
कल सुबह साथ छोड़ के साये में आ गये

'सालिक' जहाँ से बचके निकलने की चाह थी

अब क्या करूँ मकाँ वही रस्ते में आ गए

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सालिक गणवीर on September 11, 2020 at 12:51pm

भाई लक्ष्मण धामी"मुसाफिर" जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 11, 2020 at 8:14am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by सालिक गणवीर on September 10, 2020 at 10:53pm

भाई आशीष यादव जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by आशीष यादव on September 10, 2020 at 10:13pm

वाह आदरणीय, हर शेर लाजवाब कहे हैं। 

नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये 

क्या गज़ब बात कही है आपने, बिलकुल दुरुस्त।  

मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये

बिलकुल सामयिक है। यही हो रहा है। 

Comment by सालिक गणवीर on September 5, 2020 at 10:26pm
  1. भाई Dayaram Methani जी
    सादर अभिवादन
    ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम.
Comment by Dayaram Methani on September 5, 2020 at 10:02pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी, सुंदर गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।

नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये........आम अदमी के जीवन की यही हकीकत है।

मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये ........ बिलकुल सही कहा आपने। एेसा अक्सर होता है।

Comment by सालिक गणवीर on September 4, 2020 at 10:08pm

भाई बसंत कुमार शर्मा जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम.

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 3, 2020 at 8:09pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी सादर नमस्कार 

कह कर गए थे है ये मुलाक़ात आख़िरी

जैसे ही आँख झपकी वो सपने में आ गए 

लाजबाब गजल के लिए आपको ढेर सारी बधाइयाँ 

Comment by सालिक गणवीर on September 2, 2020 at 9:29pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on September 2, 2020 at 9:27pm

आदरणीया डिंपल शर्मा जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

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