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ये तितलियाँ ये फूल भी सकते में आ गये
जब पेड़ चल के ख़ुद ही बगीचेे मेंं आ गए
कल तक मिरे अज़ीज़ अंँधेरों में क़ैद थे
आंँखें रगड़ - रगड़ के उजाले में आ गये
नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये
मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये
कह कर गए थे है ये मुलाक़ात आख़िरी
जैसे ही आँख झपकी वो सपने में आ गए
ग़ैरों में उनको ढूँढ रहा था मगर जनाब
दुश्मन तो आजकल मिरे ख़ेमे मेंं आ गये
वादा किया था धूप में चलने का रात में
कल सुबह साथ छोड़ के साये में आ गये
'सालिक' जहाँ से बचके निकलने की चाह थी
अब क्या करूँ मकाँ वही रस्ते में आ गए
*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
भाई लक्ष्मण धामी"मुसाफिर" जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
भाई आशीष यादव जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.
वाह आदरणीय, हर शेर लाजवाब कहे हैं।
नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये
क्या गज़ब बात कही है आपने, बिलकुल दुरुस्त।
मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये
बिलकुल सामयिक है। यही हो रहा है।
आदरणीय सालिक गणवीर जी, सुंदर गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।
नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये........आम अदमी के जीवन की यही हकीकत है।
मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये ........ बिलकुल सही कहा आपने। एेसा अक्सर होता है।
भाई बसंत कुमार शर्मा जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम.
आदरणीय सालिक गणवीर जी सादर नमस्कार
कह कर गए थे है ये मुलाक़ात आख़िरी
जैसे ही आँख झपकी वो सपने में आ गए
लाजबाब गजल के लिए आपको ढेर सारी बधाइयाँ
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
आदरणीया डिंपल शर्मा जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
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